कुंभ लग्न की संपूर्ण जानकारी

Kumbha Lagna Sampurna

कुंभ लग्न वाले जातक के गुण

कुंभ लग्न के लोगों का कद अक्सर पतला और लंबा देखा जाता है। इनके चेहरे बड़े, गर्दन, पीठ, कमर, और पैर लंबे हो सकते हैं। इनके बाल लंबे और घने, हेयर स्टाईल साधारण होती है। उनके चेहरे की बनावट सुंदर होती है जिससे गंभीरता का आभास होता है। इनकी आंखे चमकदार होती है और ऐसा प्रतीत होता कि जैसे किसी अजीब खोज में लगे हों। उनके पूरे व्यक्तित्व से लगता है कि उनमें किसी प्रकार का दिखावा नहीं है। आप वात प्रकृति वाले होते है एवं प्रायः सिर दर्द, पेट दर्द, अपच, तथा पेट की अन्य बीमारियां होने का भय रहता है।

कुंभ लग्न के स्थिर एवं वायु तत्व प्रधान राशि होने के कारण ऐसे जातक मिलनसार, स्पष्टवादी एवं निस्वार्थ भाव से सेवा करने में उद्धत रहते है। नए-नए मित्र बनाने एवं उनसे स्थाई संबंध बनाने में कुशल होते है। वे अच्छे श्रोता होते हैं और अपने दोस्तों का बहुत ख्याल रखते हैं। कृतज्ञ स्वभाव होने से किसी मित्र या संबंधी द्वारा किए गए उपकार को नहीं भूलते तथा न ही किसी के कपट पूर्ण व्यवहार को भी जीवन भर भुला पाते हैं। ऐसे जातक किसी बुरे व्यवहार का प्रतिशोध लेने से भी नहीं हिचकिचाते है। कुंभ लग्न के जातक में अनुसंधानात्मक एवं प्रबंधात्मक योग्यता भी विशेष होती है।

आप सुख और आनंद से जीवन ब्यतीत करने वाले ईश्वर, धर्म, तथा ज्ञान में अच्छी रुचि रखने वाले होते हैं। पाप और दुराचार से दूर रहने वाले यशस्वी, धनि, मिलनसार, सुगमता पूर्वक कार्य करने में निपुण, सर्वजन प्रिय, मित्रों से प्रीत रखने वाले और सबका सम्मान करने वाले होंगें। आपकी मित्रता सदा बड़े लोगों से रहेगी, लोगों में आपकी मान मर्यादा विशेष रूप से होगी। कुंभ राशि के लोगों में एक दूसरों से संवाद करने कि प्रबल इच्छा नहीं पाई जाती है। वे काफी मजबूत इच्छाशक्तिरखने वाले होते हैं और जो उन्हें उचित लगता है उसके लिए अतिम क्षण तक लड़ने को तैयार रहते हैं। वह दूसरों को उपदेश देने की अपेक्षा स्वयं कार्य करने में विश्वास रखते हैं।

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कुंभ लग्न में ग्रहों के प्रभाव

कुंभ लग्न में चंद्र ग्रह का प्रभाव

कुंभ लग्‍न की कुंडली में मन का स्‍वामी चंद्र षष्‍ठ भाव का स्‍वामी होता है। यह जातक के रोग, ऋण, शत्रु, अपमान, चिंता, शंका, पीडा, ननिहाल, असत्य भाषण, योगाभ्यास, जमींदारी वणिक वॄति, साहुकारी, वकालत, व्यसन, ज्ञान, कोई भी अच्छा बुरा व्यसन इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है। जातक की जन्‍मकुंडली या अपने दशाकाल में चंद्रमा के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।

कुंभ लग्न में सूर्य ग्रह का प्रभाव

समस्त विश्व को प्रकाशित करने वाला सूर्य सप्‍तम भाव का स्‍वामी होकर जातक के लक्ष्मी, स्त्री, कामवासना, मृत्यु मैथुन, चोरी, झगडा अशांति, उपद्रव, जननेंद्रिय, व्यापार, अग्निकांड इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है। जातक की जन्‍मकुंडली या अपने दशाकाल में सूर्य के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।

कुंभ लग्न में मंगल ग्रह का प्रभाव

मंगल तृतीय और दशम भाव का स्‍वामी होता है। तृतीयेश होने के कारण नौकर चाकर, सहोदर, प्राकर्म, अभक्ष्य पदार्थों का सेवन, क्रोध, भ्रम लेखन, कंप्य़ुटर, अकाऊंट्स, मोबाईल, पुरूषार्थ, साहस, शौर्य, खांसी, योग्याभ्यास, दासता इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है जबकि दशमेश होने के कारण यह जातक के राज्य, मान प्रतिष्ठा, कर्म, पिता, प्रभुता, व्यापार, अधिकार, हवन, अनुष्ठान, ऐश्वर्य भोग, कीर्तिलाभ, नेतॄत्व, विदेश यात्रा, पैतॄक संपति इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है। जातक की जन्‍मकुंडली या अपने दशाकाल में मंगल के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।

कुंभ लग्न में शुक्र ग्रह का प्रभाव

शुक्र चतुर्थ और नवम भाव का स्‍वामी होता है। चतुर्थेश होने के कारण यह जातक के माता, भूमि भवन, वाहन, चतुष्पद, मित्र, साझेदारी, शांति, जल, जनता, स्थायी संपति, दया, परोपकार, कपट, छल, अंतकरण की स्थिति, जलीय पदार्थो का सेवन, संचित धन, झूंठा आरोप, अफ़वाह, प्रेम, प्रेम संबंध, प्रेम विवाह इत्यादि विषयों का कारक होता है। एवम नवमेश होने के कारण धर्म, पुण्य, भाग्य, गुरू, ब्राह्मण, देवता, तीर्थ यात्रा, भक्ति, मानसिक वृत्ति, भाग्योदय, शील, तप, प्रवास, पिता का सुख, तीर्थयात्रा, दान, पीपल इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है। कुंभ लग्न में एक केंद्र और एक त्रिकोण का स्वामी होकर शुक्र अतीव शुभ और राजयोग कारक ग्रह बन जाता है। जातक की जन्‍मकुंडली या अपने दशाकाल में शुक्र के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में अतयंत शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से न्य़ून शुभ फ़लों के साथ अधिक अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।

कुंभ लग्न में बुध ग्रह का प्रभाव

बुध पंचम भाव का स्‍वामी होकर जातक के बुद्धि, आत्मा, स्मरण शक्ति, विद्या ग्रहण करने की शक्ति, नीति, आत्मविश्वास, प्रबंध व्यवस्था, देव भक्ति, देश भक्ति, नौकरी का त्याग, धन मिलने के उपाय, अनायस धन प्राप्ति, जुआ, लाटरी, सट्टा, जठराग्नि, पुत्र संतान, मंत्र द्वारा पूजा, व्रत उपवास, हाथ का यश, कुक्षी, स्वाभिमान, अहंकार इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है। जातक की जन्‍मकुंडली या अपने दशाकाल में बुध के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।

कुंभ लग्न में बृहस्‍पति ग्रह का प्रभाव

बृहस्‍पति एकादश भाव का स्‍वामी होकर जातक के लोभ, लाभ, स्वार्थ, गुलामी, दासता, संतान हीनता, कन्या संतति, ताऊ, चाचा, भुवा, बडे भाई बहिन, भ्रष्टाचार, रिश्वत खोरी, बेईमानी इत्यादि का प्रतिनिधि होता है। जातक की जन्‍मकुंडली या अपने दशाकाल में बृहस्‍पति के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।

कुंभ लग्न में शनि ग्रह का प्रभाव

शनि प्रथम और द्वादश भाव का स्‍वामी होता है। लग्नेश होने के नाते यह जातक के रूप, चिन्ह, जाति, शरीर, आयु, सुख दुख, विवेक, मष्तिष्क, व्यक्ति का स्वभाव, आकॄति और संपूर्ण व्यक्तित्व इत्यादि का प्रतिनिधि होता है जबकि द्वादशेश होने के कारण यह जातक के निद्रा, यात्रा, हानि, दान, व्यय, दंड, मूर्छा, कुत्ता, मछली, मोक्ष, विदेश यात्रा, भोग ऐश्वर्य, लम्पटगिरी, परस्त्री गमन, व्यर्थ भ्रमण इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है। जातक की जन्‍मकुंडली या अपने दशाकाल में शनि के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।

कुंभ लग्न में राहु ग्रह का प्रभाव

राहु अष्टम भाव का स्वामी होकर यहां अष्टमेश होता है जिसके कारण उसे जातक के व्याधि, जीवन, आयु, मॄत्यु का कारण, मानसिक चिंता, समुद्र यात्रा, नास्तिक विचार धारा, ससुराल, दुर्भाग्य, दरिद्रता, आलस्य, गुह्य स्थान, जेलयात्रा, अस्पताल, चीरफ़ाड आपरेशन, भूत प्रेत, जादू टोना, जीवन के भीषण दारूण दुख इत्यादि विषयों का प्रतिनिधित्व मिलता है। जातक की जन्‍मकुंडली या अपने दशाकाल में राहु के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।

कुंभ लग्न में केतु ग्रह का प्रभाव

केतु द्वितीय भाव का स्वामी होकर यहां जातक के कुल, आंख (दाहिनी), नाक, गला, कान, स्वर, हीरे मोती, रत्न आभूषण, सौंदर्य, गायन, संभाषण, कुटुंब इत्यादि विषयों का प्रतिनिधित्व करता है। जातक की जन्‍मकुंडली या अपने दशाकाल में केतु के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।

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कुंभ लग्न में ग्रहों की स्तिथि

कुंभ लग्न में योग कारक ग्रह (शुभ-मित्र ग्रह)

  1. शुक्र देव 4, 9 (भाव का स्वामी)
  2. बुध देव 5, 8 (भाव का स्वामी)
  3. शनि देव 1, 12 (भाव का स्वामी)
  4. बृहस्पति 2, 11 (भाव का स्वामी)

कुंभ लग्न में मारक ग्रह (शत्रु ग्रह)

  1. चन्द्रमा 6 (भाव का स्वामी)
  2. सूर्य 7 (भाव का स्वामी)

कुंभ लग्न में सम ग्रह

  1. मंगल देव 3, 10 (भाव का स्वामी)

वृश्चिक लग्न में ग्रहों का फल

कुंभ लग्न में शनि ग्रह का फल

  1. शनि देव इस लग्न में पहले और बारहवें भाव के स्वामी हैं। लग्नेश होने के कारण वह कुंडली के अति योगकारक ग्रह माने जाते हैं।
    कुंडली के पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें, दशवें और ग्यारहवें भाव में विराजमान   शनि देव अपनी दशा – अंतर्दशा में अपनी क्षमतानुसार जातक को शुभ फल देते हैं।
  2. तीसरे (नीच राशि ), छठें, आठवें और बारहवें भाव में शनि देव अपनी योगकारकता खोकर अपनी दशा- अंतर्दशा में अपनी क्षमतानुसार जातक को कष्ट देते हैं। क्योँकि इन घरों में वह अशुभ हो जाते हैं।
  3. किसी भी भाव में पड़ें शनि देव यदि सूर्य के साथ अस्त हैं तो उनका रत्न नीलम पहनकर शनि देव का बल बढ़ाया जाता हैं।
  4. इस लग्न कुंडली में शनि देव विपरीत राजयोग की स्थिति में नहीं आतें क्योँकि वह स्वयं लग्नेश भी हैं। विपरीत राजयोग के लिए लग्नेश का शुभ होना अति अनिवार्य है।
  5. अशुभ पड़ें शनिदेव का दान और पाठ करके उनकी अशुभता कम की जाती है।

कुंभ लग्न में गुरु ग्रह का फल

  1. बृहस्पति देवता कुंभ लग्न में दूसरे और ग्यारहवें दो कारक भावों के स्वामी होने के कारण इस कुंडली में योग कारक ग्रह माने जाते है।
  2. कुंडली के पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें, दसवें और ग्यारहवें भाव में बृहस्पति देव अपनी दशा अंतर दशा में अपनी क्षमतानुसार शुभ फल देते हैं।
  3. तीसरे, छठे, आठवें, और बारहवें भाव में स्थित बृहस्पति देव अपनी योगकारकता खोकर अशुभ फल देते है।
  4. इस लग्न कुंडली में धन और लाभ की वृद्धि के लिए बृहस्पति का रत्न पुखराज पहना जाता है। परन्तु शनि देव के रत्न नीलम और बृहस्पति का रत्न पुखराज एक साथ नहीं पहना जाता। अशुभ भाव में पड़ें बृहस्पति का दान और पाठ करके उनकी अशुभता दूर की जाती है। हीरा और ओपल के साथ भी पुखराज नहीं पहना जाता।

कुंभ लग्न में मंगल ग्रह का फल

  1. मंगल देवता कुंभ लग्न में तीसरे और दसवें भाव के स्वामी है। लग्नेश शनि के अति शत्रु होने के कारण वह कुंडली के सम ग्रह माने जातें है। वह अपनी स्थिति के अनुसार अच्छा या बुरा फल देतें है।
  2. कुंडली के पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें, दसवें और ग्यारहवें भाव में स्थित मंगल की जब दशा अंतर्दशा चलती है तो अपनी क्षमतानुसार शुभ फल देते हैं।
  3. तीसरे, छठें, आठवें और बारहवें में स्थित मंगल की दशा अंतर्दशा जातक के लिए कष्टकारी होती है क्योँकि इन भावों में वह अशुभ हो जाते हैं।
  4. कामकाज की वृद्धि के लिए मंगल का रत्न मूंगा पहना जा सकता है परन्तु नीलम और पन्ना के साथ मूंगा कभी नहीं पहनना चाहिए।
  5. अशुभ पड़ें मंगल का पाठ व दान करके उसकी अशुभता दूर की जाती है।

कुंभ लग्न में शुक्र ग्रह का फल

  1. कुंभ लग्न में शुक्र देवता चौथे और नवम भाव के स्वामी है। शुक्र देवता की साधारण राशि वृष कुंडली के केंद्र भाव में आती है। इसलिए वह कुंडली में सबसे योग कारक ग्रह माने जाते हैं।
  2. कुंडली के पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें, दसवें और ग्यारहवें भाव में विराजमान शुक्र देवता अपनी दशा – अंतर दशा में अपनी क्षमतानुसार जातक को शुभ फल देते हैं।
  3. तीसरे, छठें, आठवें (नीच राशि) और बारहवें में स्थित शुक्र देवता अपनी योगकारकता खोकर अशुभ फल देते हैं।
  4. कुंडली के किसी भी भाव में यदि शुक्र देवता के साथ आने पर अस्त अवस्था में आ जाते हैं तो उनका रत्न हीरा पहनकर उनका बल बढ़ाया जाता है।
  5. अशुभ पड़ें शुक्र देव का पाठ व दान करके उनकी अशुभता कम की जाती है।

 कुंभ लग्न में बुध ग्रह का फल

  1. बुध देव इस कुंडली में पांचवें और आठवें भाव के स्वामी हैं। लग्नेश शनि से अति मित्रता के कारण वह कुंडली के योगकारक ग्रह बन गये।
  2. कुंडली के पहले, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें, दसवें और 11वें भाव में स्थित बुध देवता की जब दशा अंतर्दशा चलती है तो अपनी क्षमतानुसार बुध शुभ फल देते हैं।
  3. दूसरे (नीच राशि ), तीसरे, छठें, आठवें और 12वें भाव के बुध देवता शुभ फल देते हैं। परन्तु छठे, आठवें और 12वें भाव में पड़े बुध देवता विपरीत राज़ योग में आकर शुभ फल देने में सक्षम भी होतें हैं। इसके लिए लग्नेश शनि का बलि और शुभ होना अति अनिवार्य है।
  4. कुंडली के किसी भी भाव में यदि बुध देव अस्त अवस्था के हैं तो उनका रत्न पन्ना पहनकर उनका बल बढ़ाया जाता है।
  5. अशुभ पड़े बुध का दान व पाठ करके उनकी अशुभता दूर की जाती है।

कुंभ लग्न में चंद्र ग्रह का फल

  1. चंद्र देव इस लग्न कुंडली के छठे भाव के स्वामी होने के कारण रोगेश हैं। वह लग्नेश के भी अति शत्रु हैं। इसलिए कुंडली के अति मारक ग्रह माने जातें हैं।
  2. कुंडली के किसी भी भाव में पड़ें चंद्रदेव की दशा – अंतर्दशा जातक के लिए कष्ट कारी होती है।
  3. चंद्र देव छठें, आठवें और 12 वें भाव में पड़ें हैं तो वह विपरीत राजयोग में आकर शुभ फल देने में भी सक्षम हैं परन्तु इसके लिए लग्नेश शनि देव का शुभ होना अति अनिवार्य है।
  4. चन्द्रमा का रत्न मोती इस लग्न में कभी भी नहीं पहना जाता अपितु उनका पाठ व दान करके उनके मारकेत्व को कम किया जाता है।

कुंभ लग्न में सूर्य ग्रह का फल

  1. सूर्य देव इस लग्न कुंडली में सातवें भाव के स्वामी हैं। अष्टम से अष्टम नियम के अनुसार वह कुंडली  के अति मारक ग्रह बन गए। वह लग्नेश शनि के भी अति शत्रु हैं।
  2. कुंडली के किसी भी भाव में पड़ें सूर्य देव की दशा अंतर दशा जातक के लिए कष्टकारी होती है वह अपनी क्षमतानुसार अशुभ फल देतें हैं।
  3. सूर्य देव का रत्न माणिक इस लग्न कुंडली वाले जातक को कभी भी नहीं पहनना चाहिए।
  4. सूर्य देव को जल देकर और उनका पाठ व दान करके सूर्य देव के मारकेत्व को कम किया जाता है।

कुंभ लग्न में राहु ग्रह का फल

  1. राहु देव की अपनी कोई राशि नहीं होती वह अपनी मित्र राशि और शुभ भाव में ही शुभ फल देतें हैं।
  2. कुंडली के पहले, चौथे (उच्च राशि), पांचवें (उच्च राशि), नौवें भाव में राहु देव अपनी दशा -अंतर्दशा में जातक को अपनी क्षमतानुसार शुभ फल देते हैं।
  3. दूसरे, तीसरे, छठें, सातवें, आठवें, दसवें (नीच राशि), 11वें (नीच राशि), 12वें भाव में पड़ें राहु देव की दशा अंतर्दशा जातक के लिए कष्टकारी होती हैं क्योँकि इन भावों में वह अशुभ होते हैं।
  4. राहु देव का रत्न गोमेद कभी भी जातक को नहीं पहनना चाहिए। उनका पाठ व दान करके उनके मारकेत्व को कम किया जाता हैं।

कुंभ लग्न में केतु ग्रह का फल

  1. केतु देवता की अपनी कोई राशि नहीं होती। वह अपनी मित्र राशि और शुभ भाव में ही शुभ फलदायक होतें हैं।
  2. कुंडली के पहले, नौवें, दसवें (उच्च राशि), 11वें (उच्च राशि) भाव में केतु देवता अपनी दशा – अंतर्दशा में अपनी क्षमतानुसार शुभ फल देते हैं।
  3. दूसरे, तीसरे, चौथे (नीच राशि), पांचवें (नीच राशि), छठें, सातवें, आठवें, 12 वें भाव में स्थित केतु देवता मारक ग्रह बन जाते हैं और अशुभ फल देते हैं।
  4. केतु देव का रत्न लहसुनिया कभी भी किसी जातक को नहीं पहनना चाहिए। बल्कि उनका पाठ व दान करके उनके मारकेत्व को कम किया जाता है।

अपनी जन्म कुंडली से जाने 110 वर्ष की कुंडली, आपके 15 वर्ष का वर्षफल, ज्योतिष्य रत्न परामर्श, ग्रह दोष और उपाय, लग्न की संपूर्ण जानकारी, लाल किताब कुंडली के उपाय, और कई अन्य जानकारी, अपनी जन्म कुंडली बनाने के लिए यहां क्लिक करें सैंपल कुंडली देखने के लिए यहाँ क्लिक करें।

कुंभ लग्न में धन योग

कुंभ लग्न में जन्म लेने वाले व्यक्तियों के लिए धनप्रदाता ग्रह बृहस्पति है। धनेश बृहस्पति की शुभाशुभ स्थिति, धन स्थान से संबंध जोड़ने वाले ग्रहों की स्थिति एवं धन स्थान पर पड़ने वाले ग्रहों के दृष्टि संबंध से जातक की आर्थिक स्थिति, आय के स्रोत तथा चल-अचल संपत्ति का पता चलता है। इसके अतिरिक्त पंचमेश बुध भाग्येश शुक्र एवं लग्नेश शनि की अनुकूल स्थितियां भी कुंभ लग्न वाले जातकों के लिए धन और ऐश्वर्य को बढ़ाने में सहायक सिद्ध होती हैं। वैसे कुंभ लग्न के लिए गुरु, चंद्रमा व मंगल अशुभ है। शुक्र शुभ फलदायक है, गुरु मारकेश होकर भी पूरी तरह मारक का कार्य नहीं करता है। सूर्य सप्तमेश एवं लग्नेश का शत्रु होने के कारण मारकेश का काम करेगा।

शुभ युति : शुक्र + शनि

अशुभ युति : शनि + चन्द्र

राजयोग कारक : शुक्र व मंगल

  1. कुंभ लग्न में शुक्र वृष, तुला या मीन राशि का हो तो जातक को अल्प प्रयत्न से अधिक धन की प्राप्ति होती है। ऐसा जातक धन के मामले में भाग्यशाली होता है।
  2. कुंभ लग्न में बृहस्पति धनु, मीन या कर्क राशि में हो तो जातक बहुत धनपति होता है। भाग्यलक्ष्मी हमेशा उसका पीछा नहीं छोड़ती।
  3. कुंभ लग्न में बृहस्पति शुक्र के घर में तथा शुक्र बृहस्पति के घर में परस्पर स्थान परिवर्तन योग करके बैठे हो तो व्यक्ति महाभाग्यशाली होता है। ऐसा व्यक्ति जीवन में खूब धन कमाता है।
  4. कुंभ लग्न में बृहस्पति यदि मंगल के घर में एवं मंगल बृहस्पति के घर में स्थान परिवर्तन योग कर के बैठे हो तो जातक धन के मामले में बहुत भाग्यशाली होता है एवं धनवानो में अग्रगण्य होता है।
  5. कुंभ लग्न में पंचम भाव में बुध हो, गुरु धनु राशि का लाभ स्थान में चंद्रमा या मंगल के साथ हो तो “महालक्ष्मी योग” बनता है। ऐसे जातक के पास अकूत लक्ष्मी होती है। वह अपने शत्रुओं को परास्त करते हुए अखंड राज्यलक्ष्मी को भोगता है।
  6. कुंभ लग्न में मंगल यदि केंद्र-त्रिकोण में हो तथा गुरु स्वगृही हो तो जातक कीचड़ में कमल की तरह खिलता है, अर्थात निम्न परिवार में जन्म लेकर भी वह धीरे-धीरे अपने पुरुषार्थ के बल पर करोड़पति बन जाता है।
  7. कुंभ लग्न में यदि शनि, मंगल एवं गुरु युति लग्न में हो तो” महालक्ष्मी योग” बनता है। ऐसा जातक प्रबल पराक्रमी, अतिधनवान एवं प्रतापी होता है।
  8. कुंभ लग्न में शनि धनु राशि में हो तथा लाभेश गुरु लग्न में हो तो जातक शत्रुओं का नाश करते हुए स्वअर्जित धन लक्ष्मी को भोगता है। ऐसे व्यक्ति के जीवन में अचानक धनलाभ होता है।
  9. कुंभ लग्न में लग्नेश शनि, धनेश बृहस्पति एवं भाग्येश शुक्र अपनी-अपनी उच्च या स्वराशि में हो तो जातक करोड़पति होता है।
  10. कुंभ लग्न में धनेश बृहस्पति आठवें स्थान पर हो तथा सूर्य लग्न को देखता हो तो जातक को धरती में गड़ा हुआ धन मिलता है या लाटरी से रुपया मिल सकता है।
  11. कुंभ लग्न में मंगल यदि दशम भाव में वृश्चिक का हो तो “रूचक योग” बनता है। ऐसा जातक राजा तुल्य ऐश्वर्य भोगता है।
  12. कुंभ लग्न में धनेश गुरु अष्टम में एवं अष्टमेश बुध धन स्थान में परस्पर परिवर्तन करके बैठे हो तो जातक गलत तरीके जैसे- जुआ, सट्टा से धन कमाता है।
  13. कुंभ लग्न में तृतीयेश मंगल लाभ स्थान पर एवं लाभेश गुरु तृतीय स्थान पर परस्पर परिवर्तन करके बैठे हो तो ऐसे व्यक्ति को भाई भागीदारों एवं मित्रों द्वारा धन लाभ होता है।
  14. कुंभ लग्न में केंद्र में बुध, सूर्य, राहु व शनि ग्रह हों तथा त्रिकोण में दो ग्रह हो तो जातक परम भाग्यशाली एवं धनसंपन्न व्यक्ति होता है।
  15. कुंभ लग्न में शनि लग्न में स्वगृही स्थित हो मंगल की आठवीं दृष्टि शनि पर पड़ रही हो, तो “राजराजेश्वर योग” बनता है। ऐसा व्यक्ति पूर्णरूपेण संपन्न, सुखी व धनवान होता है।
  16. कुंभ लग्न में द्वितीय भाव में गुरु तथा एकादश भाव में शुक्र हो तो कंगाल के घर में जन्म लेने वाले जातक भी करोड़पति बन जाता है।

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कुंभ लग्न में रत्न

रत्न कभी भी राशि के अनुसार नहीं पहनना चाहिए, रत्न कभी भी लग्न, दशा, महादशा के अनुसार ही पहनना चाहिए।

  • लग्न के अनुसार कुंभ लग्न मैं जातक नीलम, हीरा, और पन्ना रत्न धारण कर सकते है।
  • लग्न के अनुसार कुंभ लग्न मैं जातक को पुखराज, मूंगा, मोती, और माणिक्य रत्न कभी भी धारण नहीं करना चाहिए।

कुंभ लग्न में नीलम रत्न

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  • नीलम धारण करने से पहले – नीलम की अंगूठी या लॉकेट को शुद्ध जल या गंगा जल से धोकर करें एवं पूजा करें और मंत्र का जाप करके धारण करना चाहिए।
  • कौनसी उंगली में नीलम धारण करें – नीलम की अंगूठी को मघ्यमा उंगली में धारण करना चाहिए।
  • नीलम कब धारण करें – शनिवार के दिन, शनिपुष्य नक्षत्र को, शनि के होरे में, या शनि के नक्षत्र पुष्य नक्षत्र,अनुराधा नक्षत्र, और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में नीलम धारण कर सकते है।
  • कौनसे धातु में नीलम धारण करें – चांदी, लोहे, प्लैटिनम या सोने में नीलम धारण कर सकते है।
  • नीलम धारण करने का मंत्र ॐ शं शनिश्चराय नम: इस मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए।
  • ध्यान रखे नीलम धारण करते समय राहुकाल ना हो।
  • नेचुरल और सर्टिफाइड नीलम खरीदने के लिए यहाँ क्लिक करें या संपर्क करें 08275555557 पर सुबह 11 बजे से रात 8 बजे के बीच।

कुंभ लग्न में हीरा रत्न

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  • हीरा धारण करने से पहले – हीरे की अंगूठी या लॉकेट को दूध, शुद्ध जल या गंगा जल से धोकर पूजा करें और मंत्र का जाप करके धारण करना चाहिए।
  • कौनसी उंगली में हीरा धारण करें – हीरे की अंगूठी को मघ्यमा या कनिष्का उंगली में धारण करना चाहिए।
  • हीरा कब धारण करें – हीरा को शुक्रवार के दिन, शुक्र के होरे में, शुक्रपुष्य नक्षत्र में, या शुक्र के नक्षत्र भरणी नक्षत्र, पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र और पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में धारण कर सकते है।
  • कौनसे धातु में हीरा धारण करें – चांदी, प्लैटिनम या सोने मे हीरा रत्न धारण कर सकते है।
  • हीरा धारण करने का मंत्रॐ शुं शुक्राय नम:। इस मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए।
  • ध्यान रखे हीरा धारण करते समय राहुकाल ना हो।
  • नेचुरल और सर्टिफाइड हीरा खरीदने के लिए संपर्क करें 08275555557 पर सुबह 11 बजे से रात 8 बजे के बीच।

कुंभ लग्न में पन्ना रत्न

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Natural Lab Certified Emerald – Panna
  • पन्ना धारण करने से पहले – पन्ने की अंगूठी या लॉकेट को शुद्ध जल या गंगा जल से धोकर पूजा करें और मंत्र का जाप करके धारण करना चाहिए।
  • कौनसी उंगली में पन्ना धारण करें – पन्ने की अंगूठी को कनिष्का उंगली में धारण करना चाहिए।
  • पन्ना कब धारण करें – पन्ने को बुधवार के दिन, बुध के होरे में, बुधपुष्य नक्षत्र को, या बुध के नक्षत्र अश्लेषा नक्षत्र, ज्येष्ठ नक्षत्र, और रेवती नक्षत्र में धारण कर सकते है।
  • कौनसे धातु में पन्ना धारण करें – सोना में या पंचधातु में पन्नाधारण कर सकते है।
  • पन्ना धारण करने का मंत्रॐ बुं बुधाय नमः। इस मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए।
  • ध्यान रखे पन्ना धारण करते समय राहुकाल ना हो।
  • नेचुरल और सर्टिफाइड पन्ना खरीदने के लिए यहाँ क्लिक करें या संपर्क करें 08275555557 पर सुबह 11 बजे से रात 8 बजे के बीच।

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