मकर लग्न की संपूर्ण जानकारी

मकर लग्न वाले जातक के गुण
मकर लग्न में जन्मे जातक की देह दुबली-पतली होती है। इनका कद मध्यम ऊंचाई का होता है एवं इनका वर्ण अधिकांशतः श्यामल ही होता है। प्रायः इनके शरीर का कोई भाग अनुपात में कम अथवा अधिक होता है। मकर लग्न में जन्मे जातक के नेत्र सुन्दर होते हैं, ये जातक स्वभाव से गंभीर एवं मननशील होते हैं। आध्यात्म इन्हे अपनी ओर आकर्षित करता है। अपनी व्यवहार कुशलता के कारण सफलता प्राप्त करने वाले होते हैं। ऐसे जातक सदैव सतर्क रहने वाले एवं कुशल नीतिज्ञ होते हैं। धैर्य एवं संयम इनमें कूट-कूट कर समाहित होता है।
मकर लग्न में जन्मे जातक कफ वात प्रकृति से पीड़ित रहेंगें। आप बड़े उत्साही तथा परिश्रमी होंगें। जो भी ब्यक्ति आपका बिगाड़ता है, उससे बदला लेने में आप सर्बदा तत्पर रहेंगें। आप खुले तौर से अपने विचार प्रकट करने वाले होंगे, चाहे उससे किसी के दिल पर चोट क्यों न पहुंचे, आप इसकी परबाह नहीं करेंगे। आप यदि व्यापार करें तो इन्हें असफलता का मुंह देखना पड़ता है एवं लगातार असफल होने के कारण इनमें हीन भावना भी आ जाती है। जो बात एक बार इनके दिमाग में घर कर जाए उसे करके ही मानते हैं। उस कार्य को करने में चाहे कितनी ही परेशानी क्यों न उठानी पडें, उसकी परवाह नहीं करते।
मकर लग्न में जन्मे जातक प्रायः दुबले-पतले होते हैं। समान्यतया इनकी शादी विलम्ब से होती है। इन्हें नियम और अनुशासन पर चलना पसंद होता है। ये जातक अत्यंत महत्वाकांक्षी भावना लिए होते हैं। अनेक विघ्न बाधाओं के होते हुए भी मेहनती एवं कार्यशील रहते हैं। आप अपने प्रत्येक कार्य को सावधानी एवं विचार पूर्वक करेंगें। पुण्य कर्म में तत्पर और धार्मिक तथा ईश्वर का डर रखने वाले होंगें। आप अपने आश्रितों से काम लेने में निपुण, अपने काम के प्रति समर्पित रहेंगे। ऐसे जातक वाचाल भी बहुत होते हैं तथा वाकशक्ति पर इनका कोई नियंत्रण नहीं होता। धर्म के प्रति भी आपके मन में श्रद्धा रहेगी।
अपनी जन्म कुंडली से जाने 110 वर्ष की कुंडली, आपके 15 वर्ष का वर्षफल, ज्योतिष्य रत्न परामर्श, ग्रह दोष और उपाय, लग्न की संपूर्ण जानकारी, लाल किताब कुंडली के उपाय, और कई अन्य जानकारी, अपनी जन्म कुंडली बनाने के लिए यहां क्लिक करें। सैंपल कुंडली देखने के लिए यहाँ क्लिक करें।
विषयसूची
मकर लग्न में ग्रहों के प्रभाव
मकर लग्न में चंद्रमा ग्रह का प्रभाव
मकर लग्न की कुंडली में में मन का स्वामी चंद्रमा सप्तम भाव का स्वामी होता है। यह जातक लक्ष्मी, स्त्री, कामवासना, मृत्यु मैथुन, चोरी, झगडा अशांति, उपद्रव, जननेंद्रिय, व्यापार, अग्निकांड इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है। जातक की जन्म कुंडली या अपने दशाकाल में चंद्रमा के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।
मकर लग्न में सूर्य ग्रह का प्रभाव
सूर्य अष्टम भाव का स्वामी होता है और यह जातक व्याधि, जीवन, आयु, मृत्यु का कारण, मानसिक चिंता, समुद्र यात्रा, नास्तिक विचार धारा, ससुराल, दुर्भाग्य, दरिद्रता, आलस्य, गुह्य स्थान, जेलयात्रा, अस्पताल, चीरफ़ाड आपरेशन, भूत प्रेत, जादू टोना, जीवन के भीषण दारूण दुख इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है। जातक की जन्म कुंडली या अपने दशाकाल में सूर्य के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।
मकर लग्न में मंगल ग्रह का प्रभाव
मंगल चतुर्थ और एकादश भाव का स्वामी होता है। चतुर्ठेश होने के नाते माता, भूमि भवन, वाहन, चतुष्पद, मित्र, साझेदारी, शांति, जल, जनता, स्थायी संपति, दया, परोपकार, कपट, छल, अंतकरण की स्थिति, जलीय पदार्थो का सेवन, संचित धन, झूंठा आरोप, अफ़वाह, प्रेम, प्रेम संबंध, प्रेम विवाह संबंधी विषयों का प्रतिनिधित्व करता है जबकि एकादशेश होने के नाते लोभ, लाभ, स्वार्थ, गुलामी, दासता, संतान हीनता, कन्या संतति, ताऊ, चाचा, भुवा, बडे भाई बहिन, भ्रष्टाचार, रिश्वत खोरी, बेईमानी जैसे विषयों का प्रतिनिधि होता है। जातक की जन्म कुंडली या अपने दशाकाल में मंगल के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।
मकर लग्न में शुक्र ग्रह का प्रभाव
शुक्र पंचम और दशम भाव का स्वामी होता है। पंचमेश होने के कारण यह जातक के बुद्धि, आत्मा, स्मरण शक्ति, विद्या ग्रहण करने की शक्ति, नीति, आत्मविश्वास, प्रबंध व्यवस्था, देव भक्ति, देश भक्ति, नौकरी का त्याग, धन मिलने के उपाय, अनायस धन प्राप्ति, जुआ, लाटरी, सट्टा, जठराग्नि, पुत्र संतान, मंत्र द्वारा पूजा, व्रत उपवास, हाथ का यश, कुक्षी, स्वाभिमान, अहंकार इत्यादि विषयों का और दशमेश होने के कारण राज्य, मान प्रतिष्ठा, कर्म, पिता, प्रभुता, व्यापार, अधिकार, हवन, अनुष्ठान, ऐश्वर्य भोग, कीर्तिलाभ, नेतॄत्व, विदेश यात्रा, पैतॄक संपति इत्यादि विषयों का अधिपति होता है। जातक की जन्म कुंडली या अपने दशाकाल में शुक्र के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं। एक केंद्र और त्रिकोण का स्वामित्व मिलने शुक्र मकर लग्न में अति योगकारी होता है।
मकर लग्न में बुध ग्रह का प्रभाव
मकर लग्न की कुंडली के अनुसार बुध षष्ठ भाव का स्वामी होकर यह जातक के रोग, ऋण, शत्रु, अपमान, चिंता, शंका, पीडा, ननिहाल, असत्य भाषण, योगाभ्यास, जमींदारी वणिक वॄति, साहुकारी, वकालत, व्यसन, ज्ञान, कोई भी अच्छा बुरा व्यसन इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है। जातक की जन्म कुंडली या अपने दशाकाल में बुध के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।
मकर लग्न में बृहस्पति ग्रह का प्रभाव
बृहस्पति द्वादश भाव का स्वामी होकर यह जातक के निद्रा, यात्रा, हानि, दान, व्यय, दंड, मूर्छा, कुत्ता, मछली, मोक्ष, विदेश यात्रा, भोग ऐश्वर्य, लम्पटगिरी, परस्त्री गमन, व्यर्थ भ्रमण इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है।
जातक की जन्म कुंडली या अपने दशाकाल में बृहस्पति के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।
मकर लग्न में शनि ग्रह का प्रभाव
शनि प्रथम और द्वितीय भाव का स्वामी होता है। यह लग्नेश होने के नाते जातक के रूप, चिन्ह, जाति, शरीर, आयु, सुख दुख, विवेक, मष्तिष्क, व्यक्ति का स्वभाव, आकॄति और संपूर्ण व्यक्तित्व का प्रतिनिधि एवम द्वितीयेश होने के कारण कुल, आंख (दाहिनी), नाक, गला, कान, स्वर, हीरे मोती, रत्न आभूषण, सौंदर्य, गायन, संभाषण, कुटुंब इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है। जातक की जन्म कुंडली या अपने दशाकाल में शनि के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।
मकर लग्न में राहु ग्रह का प्रभाव
मकर लग्न में राहु नवम भाव का अधिपति होकर जातक के धर्म, पुण्य, भाग्य, गुरू, ब्राह्मण, देवता, तीर्थ यात्रा, भक्ति, मानसिक वृत्ति, भाग्योदय, शील, तप, प्रवास, पिता का सुख, तीर्थयात्रा, दान, पीपल इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि बनकर अति शुभ हो जाता है। जातक की जन्म कुंडली या अपने दशाकाल में राहु के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में विशेष शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।
मकर लग्न में केतु ग्रह का प्रभाव
केतु यहां तृतीयेश होकर जातक के नौकर चाकर, सहोदर, प्राकर्म, अभक्ष्य पदार्थों का सेवन, क्रोध, भ्रम लेखन, कंप्य़ुटर, अकाऊंट्स, मोबाईल, पुरूषार्थ, साहस, शौर्य, खांसी, योग्याभ्यास, दासता इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है। जातक की जन्म कुंडली या अपने दशाकाल में केतु के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।
अपनी जन्म कुंडली से जाने 110 वर्ष की कुंडली, आपके 15 वर्ष का वर्षफल, ज्योतिष्य रत्न परामर्श, ग्रह दोष और उपाय, लग्न की संपूर्ण जानकारी, लाल किताब कुंडली के उपाय, और कई अन्य जानकारी, अपनी जन्म कुंडली बनाने के लिए यहां क्लिक करें। सैंपल कुंडली देखने के लिए यहाँ क्लिक करें।
मकर लग्न में ग्रहों की स्तिथि
मकर लग्न में योग कारक ग्रह (शुभ-मित्र ग्रह)
- शुक्र देव 5, 10 (भाव का स्वामी)
- बुध देव 6, 9 (भाव का स्वामी)
- शनि देव 1, 2 (भाव का स्वामी)
मकर लग्न में मारक ग्रह (शत्रु ग्रह)
- बृहस्पति 3, भाव 12 (भाव का स्वामी)
- चन्द्रमा 7 (भाव का स्वामी)
- सूर्य 8 (भाव का स्वामी)
मकर लग्न में सम ग्रह :
- मंगल देव 4, 11 (भाव का स्वामी)
मकर लग्न में ग्रहों का फल
मकर लग्न में शनि ग्रह का फल
- शनि देव मकर लग्न में पहले भाव के स्वामी हैं। लग्नेश होने के कारण वह कुंडली के अति योग कारक ग्रह माने जाते हैं।
- पहले, दूसरे, पांचवे, सातवें, नौवें, दसवें और 11वें भाव में स्थित शनि देवता यदि उदय अवस्था में हैं तो अपनी दशा अंतरा में सदैव अपनी क्षमतानुसार शुभ फल देते हैं।
- तीसरे, चौथे (नीच राशि), छठें, आठवें और 12वें भाव में स्थित उदय शनि देव की दशा -अंतरा जातक के लिए कष्टकारी होती है। इन भावों में पड़ें शनि देव अपनी योगकारकता खो देतेहैं। वह अशुभ फल देते हैं।
- कुंडली के किसी भी भाव में पड़ें शनि देव यदि अस्त अवस्था में हैं तो उनका रत्न नीलम पहनकर उनका बल बढ़ाया जाता है।
- अशुभ भावों में पड़ें शनि देव का पाठ व दान करके उनकी अशुभता कम की जाती है।
मकर लग्न में बृहस्पति ग्रह का फल
- मकर लग्न में बृहस्पति देवता तीसरे और बारहवें भावों के स्वामी हैं। लग्नेश शनि के विरोधी दल के होने के कारण वह कुंडली के मारक ग्रह माने जाते हैं।
- कुंडली के किसी भी भाव में पड़ें बृहस्पति देवता की जब भी दशा -अंतरा चलती है तो वह अपनी क्षमतानुसार अशुभ फल देते हैं।
- छठें, आठवें और 12वें भाव में पड़ें हैं तो वह विपरीत राजयोग में आकर शुभ फल देने की क्षमता भी रखतें हैं परन्तु इसके लिए शनि देव का शुभ व बलि होना अनिवार्य है।
- इस लग्न कुंडली में बृहस्पति देवता का रत्न पुखराज कभी नहीं पहना जाता
- बृहस्पति देवता का पाठ और दान करके उनकी अशुभता दूर की जाती है।
मकर लग्न में मंगल ग्रह का फल
- मंगल देव इस लग्न कुंडली में चौथे और 11वें भाव के स्वामी हैं। दो अच्छे घरों के मालिक होते हुए भी वह लग्नेश शनि देव के अति शत्रु हैं। जिस कारण वह कुंडली के सम ग्रह माने जाते हैं।
- पहले, दूसरे, चौथे, पांचवे, नौवें,दसवें और 11वें भाव में स्थित मंगल देवता अपनी दशा – अंतरा में अपनी क्षमता अनुसार शुभ फल देते हैं।
- तीसरे, छठें, सातवे (नीच राशि ), आठवें और 12वें भाव में पड़ें मंगल देवता अपनी दशा – अंतरा में अपनी क्षमतानुसार अशुभ फल देते हैं।
- मंगल देव यदि कही कुंडली में अच्छे भाव में हैं तो उनका रत्न मूंगा पहन सकते हैं। परन्तु मूंगा, नीलम, पन्ना और हीरा, ओपल के साथ नहीं पहना जाता।
मकर लग्न में शुक्र ग्रह का फल
- मकर लग्न में शुक्र देवता पांचवें और दसवें भाव के स्वामी हैं। केंद्र और त्रिकोण भाव के मालिक होने के साथ वह लग्नेश शनि के अति मित्र भी हैं। इन्ही कारणों से वह कुंडली के अति योग करक ग्रह माने जाते हैं।
- कुंडली के पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, दसवें 11वें भाव में विराजमान शुक्र देवता की जब दशा – अंतरा चलती है तो वह अपनी क्षमतानुसार जातक को शुभ फल देते हैं।
- तीसरे, छठें, आठवें, नौवें (नीच राशि ) और 12वें भाव में उदय अवस्था के शुक्र देव अपनी योगकारकता खोकर अशुभ फल देते हैं।
- कुंडली के किसी भी भाव में पड़ें शुक्र देवता यदि सूर्य के साथ अस्त अवस्था के हैं तो उनका रत्न हीरा और ओपल पहनकर उनका बल बढ़ाया जाता है।
- अशुभ पड़े शुक्र देवता का पाठ और दान करके उनकी अशुभता दूर की जाती है।
मकर लग्न में बुध ग्रह का फल
- मकर लग्न में बुध देवता छठें और नवम भाव के स्वामी हैं। बुध देव की मूल त्रिकोण राशि कन्या कुंडली के मूल त्रिकोण भाव में आती है। बुध देव लग्नेश शनि के अति मित्र भी हैं। इसलिए बुध देवता कुंडली के योगकारक ग्रह माने जाते हैं।
- कुंडली के पहले, दूसरे, चौथे, पांचवे,सातवें, नौवें दसवें और 11वें भाव में स्थित बुध देवता अपनी क्षमतानुसार शुभ फल देते हैं।
- तीसरे ( नीच राशि ), छठे, आठवें और 12वें भाव में पड़ें बुध अपनी दशा-अंतरा में अपनी क्षमतानुसार अशुभ फल देते हैं। परन्तु छठें, आठवें और12वें भाव में पड़ें बुध देव यदि विपरीत राजयोग की स्थिति में हैं तो वह शुभ फल देने में सक्षम होतें हैं। उसके लिए लग्नेश शनि का बलि होना अतिअनिवार्य है।
- कुंडली के किसी भी भाव में स्थित बुध यदि सूर्य के साथ अस्त अवस्था में आ जाते हैं तो उनका रत्न पन्ना पहनकर बुध का बल बढ़ाया जाता है।
- अशुभ अवस्था में बुध का दान पाठ कर के उनकी अशुभता दूर की जाती है।
मकर लग्न में चंद्र ग्रह का फल
- चंद्र देवता मकर लग्न में सातवें भाव के स्वामी हैं। लग्नेश शनि के साथ भी उनकी अति शत्रुता है।
- अष्टम से अष्टम नियम के अनुसार भी वह कुंडली के अति मारक ग्रह बन जाते हैं।
- कुंडली के किसी भी भाव में पड़ें चंद्र देव अपनी दशा -अंतरा में अपनी क्षमतानुसार जातक को अशुभ फल ही देते हैं।
- चन्द्रमा का रत्न मोती इस लग्न वाले जातकों को कभी भी नहीं पहनना चाहिए।
- चंद्र देवता का पाठ और दान सदैव करके उनके मारकेत्व को कम किया जाता है।
मकर लग्न में सूर्य ग्रह का फल
- मकर लग्न में सूर्य देवता अष्टमेश हैं लग्नेश के भी अति शत्रु होने के कारण वह कुंडली के अति मारक ग्रह बन गए।
- कुंडली के किसी भी भाव,में पड़ें सूर्य देव अपनी दशा – अंतरा में अपनी क्षमतानुसार अशुभ फल देते हैं।
- परन्तु छठें, आठवें और 12वें भाव में सूर्य देवता विपरीत राजयोग में आकर शुभ फल देने में भी सक्षम होते हैं। इसके लिए लग्नेश शनि के शुभ होना अति अनिवार्य है।
- मकर लग्न में कभी भी सूर्य का रत्न माणिक नहीं पहना जाता। सदैव सूर्य को जल देकर और उनके दान -पाठ करके सूर्य के मारकेत्व को कम किया जाता है।
मकर लग्न में राहु ग्रह का फल
- राहु देवता की अपनी कोई राशि नहीं होती है। वह अपनी मित्र राशि और शुभ भाव में ही शुभ फल देते हैं।
- कुंडली के पहले, दूसरे, पांचवें,नौवें,दसवें भाव में स्थित राहु देव अपनी दशा -अंतरा में अपनी क्षमतानुसार शुभ फल देते हैं।
- तीसरे, चौथे, छठें,सातवें, आठवें, 11वें ( नीच राशि ) और 12वें (नीच राशि ) में स्थित राहु देवता अपनी दशा – अंतर्दशा में अपनी क्षमतानुसार जातक को कष्ट देते हैं। क्योँकि वह इन भावों में मारक होते हैं।
- राहु देवता का रत्न गोमेद कभी भी धारण नहीं करना चाहिए बल्कि उनका दान -पाठ करके राहु देवता की अशुभता दूर की जाती है।
मकर लग्न कुंडली में केतु ग्रह का फल
- केतु देवता की भी अपनी कोई राशि नहीं होती है। वह अपनी मित्र राशि और शुभ भावों में ही शुभ फल देतें हैं।
- कुंडली के पहले, दूसरे, नौवें, दसवें और 11वें (उच्च राशि ) भाव में स्थित केतु देव अपनी दशा – अंतरा में अपनी क्षमतानुसार शुभ फल देते हैं।
- तीसरे, चौथे, पांचवें ( नीच राशि ), छठें (नीच राशि ), सातवें, आठवें और 12वें भाव में स्थित केतु अपनी दशा अंतर दशा चलने पर जातक को कष्ट ही देतें हैं। इन भावों में वह मारक ग्रह ही बन जातें हैं।
- केतु का रत्न लहसुनिया कभी भी नहीं पहना जाता।
- केतु देवता का मारकेत्व को उनके पाठ और दान करके दूर किया जाता है।
मकर लग्न में धन योग
मकर लग्न में जन्म लेने वाले व्यक्तियों के लिए धनप्रदाता ग्रह शनि है। धनेश शनि की शुभाशुभ स्थिति, धन स्थान से संबंध स्थापित करने वाले ग्रहों की स्थिति एवं धन स्थान पर पड़ने वाले ग्रहों के दृष्टि संबंध से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति, आय के स्रोत तथा चल-अचल संपत्ति का पता चलता है। इसके अतिरिक्त पंचमेश शुक्र, भाग्येश बुध, लाभेश मंगल की अनुकूल स्थितियां मकर लग्न वाले जातकों के लिए धन एवं ऐश्वर्य को बढ़ाने में सहायक होती हैं। वैसे मकर लग्न वालों के लिए मंगल, गुरु और चंद्रमा अशुभ फलदायक हैं। शुक्र और बुध शुभ फलदायक हैं, शुक्र अकेला राजयोग कारक है। शनि लग्नेश होने के कारण मारकेश का अशुभफल नहीं देता।
शुभ युति :- शुक्र + मंगल
अशुभ युति :- शनि + गुरु
राजयोग कारक :- शुक्र व बुध
- मकर लग्न में यदि बुध कन्या राशि में हो तो जातक अल्प प्रयत्न से ही धनपति बन जाता है।
- मकर लग्न में शुक्र पंचम में हो तथा लाभ स्थान में मंगल हो तो व्यक्ति बहुत सारी भू-संपत्ति का स्वामी होता हुआ शहर का प्रतिष्ठित धनवान होता है।
- मकर लग्न में शनि मकर, कुंभ या तुला राशि में हो तो ऐसा जातक अपने जीवन में बहुत धन कमाता है। भाग्यलक्ष्मी जीवन भर उसका साथ नहीं छोड़ती।
- मकर लग्न में शनि कन्या राशि में तथा बुध मकर राशि में स्थान परिवर्तन करके बैठे हो तो व्यक्ति महाभाग्यशाली होता है ऐसा व्यक्ति धनवानों में अग्रणी होता है।
- मकर लग्न में शनि मंगल के घर में एवं मंगल शनि के घर में परस्पर राशि परिवर्तन करके बैठे हो, तो ऐसा जातक अपने जीवन में हर मुश्किलों को पार करते हुए बहुत धन कमाता है। लक्ष्मीजी हमेशा उसका साथ नहीं छोड़ती।
- मकर लग्न में शुक्र केंद्र-त्रिकोण में हो तथा शनि स्वगृही हो तो व्यक्ति कीचड़ में कमल की तरह खिलता है, अर्थात निम्न परिवार में जन्म लेकर भी वह अपने पुरुषार्थ के बल पर करोड़पति बन जाता है।
- मकर लग्न में शुक्र पंचम स्थान में हो तथा लाभ स्थान में मंगल हो तो जातक बहुत लक्ष्मीवान होता है।
- मकर लग्न में शनि, मंगल और गुरु की युति हो तो महाभाग्यशाली योग बनता है। ऐसा जातक प्रबल पराक्रमी अति धनवान एवं ऐश्वर्यवान होता है।
- मकर लग्न में शनि वृश्चिक राशि में तथा मंगल लग्न में हो तो जातक शत्रुओं का नाश करते हुए स्वअर्जित धन लक्ष्मी को भोगता है। ऐसे व्यक्ति को जीवन में अचानक धनलाभ होता है।
- मकर लग्न में धनेश शनि, भाग्येश बुध, लाभेश मंगल अपनी-अपनी उच्च या स्वराशि में स्थित हो तो जातक करोड़पति होता है।
- मकर लग्न में नवम भाव में राहु, शुक्र, शनि और मंगल युति हो तो जातक अरबपति होता है।
- मकर लग्न में धनेश शनि ऑटो परंतु सूर्य लग्न को देखता हूं तो ऐसे जातक को जमीन में गड़ा हुआ धन मिलता है, या लॉटरी द्वारा धन मिल सकता है।
- मकर लग्न में लाभेश मंगल नवम भाव में शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो ऐसे जातक को अनायास ही धन की प्राप्ति होती है।
- मकर लग्न में शनि अष्टम स्थान में एवं अष्टमेश सूर्य धन स्थान में परस्पर स्थान परिवर्तन करके बैठे हो तो ऐसा जातक गलत तरीके जैसे जुआ, सट्टा आदि से धन कमाता है।
- मकर लग्न में तृतियेश गुरु लाभ स्थान में एवं लाभेश मंगल तृतीय स्थान में परस्पर स्थान परिवर्तन करके बैठे हो तो ऐसे व्यक्ति को भाई, भागीदारों एवं मित्रों द्वारा धन लाभ होता है।
- मकर लग्न में सूर्य केंद्र में हो, चंद्रमा अपने मित्र के नवांश में हो तथा चंद्रमा पर गुरु की दृष्टि हो तो जातक धनवान एवं गुणवान होता है।
अपनी जन्म कुंडली से जाने 110 वर्ष की कुंडली, आपके 15 वर्ष का वर्षफल, ज्योतिष्य रत्न परामर्श, ग्रह दोष और उपाय, लग्न की संपूर्ण जानकारी, लाल किताब कुंडली के उपाय, और कई अन्य जानकारी, अपनी जन्म कुंडली बनाने के लिए यहां क्लिक करें। सैंपल कुंडली देखने के लिए यहाँ क्लिक करें।
मकर लग्न में रत्न
रत्न कभी भी राशि के अनुसार नहीं पहनना चाहिए, रत्न कभी भी लग्न, दशा, महादशा के अनुसार ही पहनना चाहिए।
- लग्न के अनुसार मकर लग्न मैं जातक नीलम, हीरा, और पन्ना रत्न धारण कर सकते है।
- लग्न के अनुसार मकर लग्न मैं जातक को पुखराज, मूंगा, मोती, और माणिक्य रत्न कभी भी धारण नहीं करना चाहिए।
मकर लग्न में हीरा रत्न

- हीरा धारण करने से पहले – हीरे की अंगूठी या लॉकेट को दूध, शुद्ध जल या गंगा जल से धोकर पूजा करें और मंत्र का जाप करके धारण करना चाहिए।
- कौनसी उंगली में हीरा धारण करें – हीरे की अंगूठी को मघ्यमा या कनिष्का उंगली में धारण करना चाहिए।
- हीरा कब धारण करें – हीरा को शुक्रवार के दिन, शुक्र के होरे में, शुक्रपुष्य नक्षत्र में, या शुक्र के नक्षत्र भरणी नक्षत्र, पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र और पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में धारण कर सकते है।
- कौनसे धातु में हीरा धारण करें – चांदी, प्लैटिनम या सोने मे हीरा रत्न धारण कर सकते है।
- हीरा धारण करने का मंत्र – ॐ शुं शुक्राय नम:। इस मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए।
- ध्यान रखे हीरा धारण करते समय राहुकाल ना हो।
- नेचुरल और सर्टिफाइड हीरा खरीदने के लिए संपर्क करें 08275555557 पर सुबह 11 बजे से रात 8 बजे के बीच।
मकर लग्न में पन्ना रत्न
- पन्ना धारण करने से पहले – पन्ने की अंगूठी या लॉकेट को शुद्ध जल या गंगा जल से धोकर पूजा करें और मंत्र का जाप करके धारण करना चाहिए।
- कौनसी उंगली में पन्ना धारण करें – पन्ने की अंगूठी को कनिष्का उंगली में धारण करना चाहिए।
- पन्ना कब धारण करें – पन्ने को बुधवार के दिन, बुध के होरे में, बुधपुष्य नक्षत्र को, या बुध के नक्षत्र अश्लेषा नक्षत्र, ज्येष्ठ नक्षत्र, और रेवती नक्षत्र में धारण कर सकते है।
- कौनसे धातु में पन्ना धारण करें – सोना में या पंचधातु में पन्नाधारण कर सकते है।
- पन्ना धारण करने का मंत्र – ॐ बुं बुधाय नमः। इस मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए।
- ध्यान रखे पन्ना धारण करते समय राहुकाल ना हो।
- नेचुरल और सर्टिफाइड पन्ना खरीदने के लिए यहाँ क्लिक करें या संपर्क करें 08275555557 पर सुबह 11 बजे से रात 8 बजे के बीच।
मकर लग्न में नीलम रत्न
- नीलम धारण करने से पहले – नीलम की अंगूठी या लॉकेट को शुद्ध जल या गंगा जल से धोकर करें एवं पूजा करें और मंत्र का जाप करके धारण करना चाहिए।
- कौनसी उंगली में नीलम धारण करें – नीलम की अंगूठी को मघ्यमा उंगली में धारण करना चाहिए।
- नीलम कब धारण करें – शनिवार के दिन, शनिपुष्य नक्षत्र को, शनि के होरे में, या शनि के नक्षत्र पुष्य नक्षत्र,अनुराधा नक्षत्र, और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में नीलम धारण कर सकते है।
- कौनसे धातु में नीलम धारण करें – चांदी, लोहे, प्लैटिनम या सोने में नीलम धारण कर सकते है।
- नीलम धारण करने का मंत्र – ॐ शं शनिश्चराय नम:। इस मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए।
- ध्यान रखे नीलम धारण करते समय राहुकाल ना हो।
- नेचुरल और सर्टिफाइड नीलम खरीदने के लिए यहाँ क्लिक करें या संपर्क करें 08275555557 पर सुबह 11 बजे से रात 8 बजे के बीच।
अन्य लग्न की जानकारी पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
सावधान रहे – रत्न और रुद्राक्ष कभी भी लैब सर्टिफिकेट के साथ ही खरीदना चाहिए। आज मार्केट में कई लोग नकली रत्न और रुद्राक्ष बेच रहे है, इन लोगो से सावधान रहे। रत्न और रुद्राक्ष कभी भी प्रतिष्ठित जगह से ही ख़रीदे। 100% नेचुरल – लैब सर्टिफाइड रत्न और रुद्राक्ष ख़रीदे, अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें
अगर आपको यह लेख पसंद आया है, तो हमारे YouTube चैनल को सब्सक्राइब करें, नवग्रह के रत्न, रुद्राक्ष, रत्न की जानकारी और कई अन्य जानकारी के लिए। आप हमसे Facebook और Instagram पर भी जुड़ सकते है
नवग्रह के नग, नेचरल रुद्राक्ष की जानकारी के लिए आप हमारी साइट Gems For Everyone पर जा सकते हैं। सभी प्रकार के नवग्रह के नग – हिरा, माणिक, पन्ना, पुखराज, नीलम, मोती, लहसुनिया, गोमेद मिलते है। 1 से 14 मुखी नेचरल रुद्राक्ष मिलते है। सभी प्रकार के नवग्रह के नग और रुद्राक्ष बाजार से आधी दरों पर उपलब्ध है। सभी प्रकार के रत्न और रुद्राक्ष सर्टिफिकेट के साथ बेचे जाते हैं। रत्न और रुद्राक्ष की जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें।