मीन लग्न की संपूर्ण जानकारी

मीन लग्न वाले जातक के गुण
मीन लग्न में जन्म लेने वाले जातकों का कद मध्यम आकार का होता है एवं ये गौर वर्ण लिए होते हैं। इनकी नाक ऊँची तथा इनके केश घुँघराले होते हैं। ऐसे जातक चिंतन मनन करने वाले होते हैं। ये ईश्वर में भक्ति रखने वाले होते हैं एवं सामाजिक रूढि़यों का कट्टरता से अनुपालन करते हैं। इस लग्न के लोग व्यावहारिक नहीं होते बल्कि संवेदनशील एवं दूरदर्शी होते हैं। आशावादी और निराशावादी के मिश्रित स्वाभाव वाले इस लग्न के जातक किसी एक मसले पर अपनी राय नहीं बना पाते।
मीन लग्न में जन्मे जातक विलास प्रिय, सुख शांतिमय और भोग बिलासमय जीवन ब्यतीत करने वाले होते है। इस कारण वे आँख मूँद कर पानी की तरह रुपया खर्च करते हैं। ऐसे ब्यक्ति कुशल कवि और लेखक होते हैं तथा इसमें उनको आनंद की प्राप्ति होती है। आप समय की कीमत को जानने वाले सदा किसी न किसी काम में लगे हुए प्रतीत होंगें। आप बहुत सी बातों के जानने वाले और प्रायः सभी बातों की खबर रखने वाले होंगें। आप कीर्ति संपन्न, दक्ष, अल्पहारी,चपल और धन समृद्धि युक्त व्यक्ति होंगें।
ऐसे जातकों की धन-हानि शत्रु द्वारा तथा पारस्परिक राग द्धेष से होती है। ऐसे ब्यक्ति समय-समय पर साहस से काम लेते हैं और कभी-कभी डरपोंक भी हो जाते हैं। इन्हें नाटक, संगीत, चित्र, नाच, तथा अन्य सुललित कलाओं में अभिरुचि तथा प्रेम होता है। बातचीत की कला में ये लोग माहिर होते हैं। इस लग्न के लोग विश्वाशी और वफादार होते हैं, उन्हें आसानी से भ्रमित किया जा सकता है। उनका गैर व्यवहारिक स्वाभाव करीबी लोगों के लिए परेशानी का सबब बन जाता है।
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विषयसूची
मीन लग्न में ग्रहों के प्रभाव
मीन लग्न में मीन ग्रह का प्रभाव
मीन लग्न में मन का स्वामी चंद्रमा पंचम भाव का स्वामी होकर माता, भूमि भवन, वाहन, चतुष्पद, मित्र, साझेदारी, शांति, जल, जनता, स्थायी संपति, दया, परोपकार, कपट, छल, अंतकरण की स्थिति, जलीय पदार्थो का सेवन, संचित धन, झूंठा आरोप, अफ़वाह, प्रेम, प्रेम संबंध, प्रेम विवाह इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है। जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में चंद्रमा के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।
मीन लग्न में सूर्य ग्रह का प्रभाव
सूर्य षष्ठ भाव का स्वामी होकर यह जातक के रोग, ऋण, शत्रु, अपमान, चिंता, शंका, पीडा, ननिहाल, असत्य भाषण, योगाभ्यास, जमींदारी वणिक वृति, साहुकारी, वकालत, व्यसन, ज्ञान, कोई भी अच्छा बुरा व्यसन इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है। जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में सूर्य के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।
मीन लग्न में मंगल ग्रह का प्रभाव
मंगल द्वितीय और नवम भाव का स्वामी होता है द्वितीय भाव का अधिपति होने के कारण जातक के कुल, आंख (दाहिनी), नाक, गला, कान, स्वर, हीरे मोती, रत्न आभूषण, सौंदर्य, गायन, संभाषण, कुटुंब इत्यादि विषयों का प्रतिनिधित्व करता है जबकि नवमेश होने के कारण यह धर्म, पुण्य, भाग्य, गुरू, ब्राह्मण, देवता, तीर्थ यात्रा, भक्ति, मानसिक वृत्ति, भाग्योदय, शील, तप, प्रवास, पिता का सुख, तीर्थयात्रा, दान, पीपल इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है। जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में मंगल के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।
मीन लग्न में शुक्र ग्रह का प्रभाव
शुक्र तृतीय और अष्टम भाव का स्वामी होता है। तॄतीयेश होने के कारण यह जातक के नौकर चाकर, सहोदर, प्राकर्म, अभक्ष्य पदार्थों का सेवन, क्रोध, भ्रम लेखन, कंप्य़ुटर, अकाऊंट्स, मोबाईल, पुरूषार्थ, साहस, शौर्य, खांसी, योग्याभ्यास, दासता इत्यादि संदर्भों का प्रतिनिधि बनता है जबकि अष्टमेश होने के कारण यह व्याधि, जीवन, आयु, मॄत्यु का कारण, मानसिक चिंता, समुद्र यात्रा, नास्तिक विचार धारा, ससुराल, दुर्भाग्य, दरिद्रता, आलस्य, गुह्य स्थान, जेलयात्रा, अस्पताल, चीरफ़ाड आपरेशन, भूत प्रेत, जादू टोना, जीवन के भीषण दारूण दुख इत्यादि का प्रतिनिधि होता है। जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में शुक्र के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।
मीन लग्न में बुध ग्रह का प्रभाव
बुध चतुर्थ भाव का स्वामी होकर जातक के माता, भूमि भवन, वाहन, चतुष्पद, मित्र, साझेदारी, शांति, जल, जनता, स्थायी संपति, दया, परोपकार, कपट, छल, अंतकरण की स्थिति, जलीय पदार्थो का सेवन, संचित धन, झूंठा आरोप, अफ़वाह, प्रेम, प्रेम संबंध, प्रेम विवाह इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि बनता है। जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में बुध के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।
मीन लग्न में बृहस्पति ग्रह का प्रभाव
बृहस्पति दशम भाव का स्वामी होकर जातक के राज्य, मान प्रतिष्ठा, कर्म, पिता, प्रभुता, व्यापार, अधिकार, हवन, अनुष्ठान, ऐश्वर्य भोग, कीर्तिलाभ, नेतृत्व, विदेश यात्रा, पैतॄक संपति इत्यादि विषयों का प्रतिनिधित्व करता है। जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में बॄहस्पति के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।
मीन लग्न में शनि ग्रह का प्रभाव
शनि एकादश और द्वादश भाव का स्वामी होता है। एकादश भाव का स्वामी होने के कारण यह जातक के लोभ, लाभ, स्वार्थ, गुलामी, दासता, संतान हीनता, कन्या संतति, ताऊ, चाचा, भुवा, बडे भाई बहिन, भ्रष्टाचार, रिश्वत खोरी, बेईमानी इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि बनता है जबकि द्वादशेश होने के नाते यह निद्रा, यात्रा, हानि, दान, व्यय, दंड, मूर्छा, कुत्ता, मछली, मोक्ष, विदेश यात्रा, भोग ऐश्वर्य, लम्पटगिरी, परस्त्री गमन, व्यर्थ भ्रमण।इत्यादि विषयों का प्रतिनिधित्व करता है। जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में शनि के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।
मीन लग्न में राहु ग्रह का प्रभाव
राहु को मीन लग्न में सप्तमेश होने का दायित्व मिलता है जिसकी वजह से यह जातक लक्ष्मी, स्त्री, कामवासना, मृत्यु मैथुन, चोरी, झगडा अशांति, उपद्रव, जननेंद्रिय, व्यापार, अग्निकांड इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होत है। जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में राहु के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।
मीन लग्न में केतु ग्रह का प्रभाव
केतु को मीन लग्न में लग्नेश होने का दायित्व मिलता है इस वजह से यह जातक के रूप, चिन्ह, जाति, शरीर, आयु, सुख दुख, विवेक, मष्तिष्क, व्यक्ति का स्वभाव, आकृति और संपूर्ण व्यक्तित्व को प्रतिनिधित्व करता है। जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में केतु के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।
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मीन लग्न में ग्रहों की स्तिथि
मीन लग्न में योग कारक ग्रह (शुभ-मित्र ग्रह)
- बृहस्पति 1, 10 (भाव का स्वामी)
- चन्द्रमा 1 (भाव का स्वामी)
- मंगल देव 2, 9 (भाव का स्वामी)
मीन लग्न में मारक ग्रह (शत्रु ग्रह)
- सूर्य 6 (भाव का स्वामी)
- शुक्र देव 3, 8, भाव का स्वामी)
- शनि देव 11, 12 (भाव का स्वामी)
मीन लग्न में सम ग्रह
- बुध देव 4, 7 (भाव का स्वामी)
मीन लग्न में ग्रहों का फल
मीन लग्न में बृहस्पति ग्रह का फल
- बृहस्पति देवता मीन लग्न में पहले और दशम भाव के स्वामी हैं। लग्नेश होने के कारण वह कुंडली के अति योग क।रक ग्रह माने जाते हैं।
- बृहस्पति देव इस कुंडली में पहले, दूसरे, चौथे, पांचवे, सातवें, नौवें तथा दसवें भाव में अपनी दशा -अंतरदशा में अपनी क्षमतानुसार शुभ फल देतें हैं।
- बृहस्पति देव इस कुंडली में यदि तीसरे, छठें, आठवें, 11वें (नीच राशि) तथा 12 वें भाव में पड़ा हो तो अपनी दशा अंतर्दशा में अपनी क्षमतानुसार अशुभ फल देता है।
- बृहस्पति देव का रत्न पुखराज इस लग्न कुंडली में धारण किया जा सकता है।
- यदि बृहस्पति देव किसी भी भाव में अस्त अवस्था में पड़ें हो तो इस ग्रह का रत्न पुखराज अवश्य धारण किया जाता है।
- अशुभ पड़े बृहस्पति देव का पाठ व दान करके उनकी अशुभता दूर की जाती है।
मीन लग्न में मंगल ग्रह का फल
- मंगल देवता मीन लग्न में दूसरे तथा नौवें भाव के स्वामी हैं। लग्नेश बृहस्पति के मित्र ग्रह होने के कारण मंगल देवता इस लग्न कुंडली में योग कारक ग्रह हैं।
- मंगल देवता यदि इस लग्न कुंडली में पहले, दूसरे, चौथे, सातवें, नौवें, दसवें तथा 11वें (उच्च राशि) में पड़े हो तो अपनी दशा -अंतरदशा में अपनी क्षमतानुसार शुभ फल देतें हैं।
- मंगल देवता यदि इस लग्न कुंडली में तीसरे, पांचवें (नीच राशि), छठे, आठवें या 12वें भाव में पड़े हो तो अपनी दशा अंतरदशा में अपनी क्षमतानुसार अशुभ फल देते हैं।
- मंगल देव इस लग्न कुंडली में किसी भी भाव में यदि अस्त अवस्था में पड़ें हो तो मंगल देव का रत्न मूंगा अवश्य धारण किया जाता है।
- अशुभ पड़े मंगल देव के दान, पाठ तथा पूजन करके ग्रह की अशुभता को कम किया जाता है।
मीन लग्न में शुक्र ग्रह का फल
- शुक्र देवता मीन लग्न की कुंडली में तीसरे तथा आठवें भाव के स्वामी हैं। लग्नेश बृहस्पति के विरोधी दल होने के कारण शुक्र देवता इस कुंडली में मारक ग्रह हैं।
- कुंडली के किसी भी भाव में पड़े शुक्र देव अपनी दशा – अंतर्दशा में सदैव अशुभ फल देते हैं।
- शुक्र देव छठे, आठवें और 12वें भाव में पड़े हों तो वह विपरीत राजयोग में आकर शुभ फल देने में भी सक्षम हैं परन्तु इस के लिए लग्नेश बृहस्पति देव का शुभ होना अति अनिवार्य हैं।
- शुक्र देवता का रत्न इस लग्न में कभी भी धारण नहीं किया जाता। अपितु इस का दान पाठ करके उनके मारकेत्व को कम् किया जाता है।
मीन लग्न में बुध ग्रह का फल
- बुध देवता मीन लग्न कुंडली में चौथे और सातवें भाव के स्वामी हैं। अपनी स्थिति के अनुसार यह कुंडली में अच्छा या बुरा फल देतें है।
- दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नवम, दसम और एकादश भाव में बुध देवता अपनी दशा- अंतर्दशा में अपनी क्षमता अनुसार शुभ फल देते हैं।
- पहले (नीच), तीसरे, छठे, आठवें और द्वादश भाव में बुध देवता को केन्द्राधिपति दोष लग जाता है। वह दूषित हो जाते हैं अपनी दशा – अंतर्दशा में अशुभ फल देतें है क्योँकि वह अपनी योगकारकता खो देते हैं।
- कुंडली के किसी भी भाव में बुध देवता अस्त हो तो उसका रत्न पन्ना पहन कर उनका बल बढ़ाया जाता है।
- उदय अवस्था में यदि बुध देव अशुभ भाव में पड़े हों तो उनका पाठ और दान करके उनकी अशुभता दूर की जाती है।
मीन लग्न में चंद्र ग्रह का फल
- चंद्र देवता मीन लग्न की कुंडली मे पांचवें घर के स्वामी हैं कुंडली के योग क।रक ग्रह हैं और त्रिकोण आदि पति है। लग्नेश के मित्र हैं।
- पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, दसम, ग्यारहवें भाव में चंद्र देव अपनी दशा -अंतर्दशा में सदैव शुभ फल देते हैं।
- तीसरे, छठें, आठवें, नौवें (नीच राशि) और बारहवें भाव में चंद्र देव अपनी दशा अंतर्दशा में सदैव अशुभ फल देते हैं।
- कुंडली में चंद्र देव किसी भी भाव में अस्त हो तो उनका रत्न मोती पहनकर उनका बल बढ़ाया जा सकता है।
- यदि चंद्र देव किसी भी अशुभ अवस्था में पड़ें हों तो उनका दान पाठ करके अशुभता को दूर किया जा सकता है।
मीन लग्न में सूर्य ग्रह का फल
- मीन लग्न में सूर्य देव छठे भाव के स्वामी हैं। रोग भाव के कारण वह कुंडली के रोगेश हैं। इसलिए वह एक मारक ग्रह माने जाते हैं।
- कुंडली के किसी भी भाव में स्थित सूर्य देव अपनी दशा अंतर्दशा में जातक को कष्ट ही देते हैं। क्योँकि वह कुंडली के अति मारक ग्रह हैं।
- छठे और 12वें भाव में स्थित सूर्य देव विपरीत राजयोग में आकर शुभ फल देतें हैं। इसके लिए लग्नेश बृहस्पति का शुभ और बलि होना अनिवार्य है।
- आठवें भाव में सूर्य देव अपनी नीच राशि के कारण विपरीत राजयोग की स्थिति में नहीं आते।
- सूर्य का रत्न माणिक इस लग्न वालों को कभी भी नहीं पहनना चाहिए।
- सूर्य को जल देकर और दान -पाठ करके सूर्य के मारकेत्व को कम किया जाता है।
मीन लग्न में शनि ग्रह का फल
- शनि देव इस लग्न कुंडली में एकादश और द्वादश भाव के मालिक हैं। वह लग्नेश बृहस्पति के विरोधी दल के ग्रह हैं। इसलिए शनि देव कुंडली में अति मारक ग्रह माने जाते हैं।
- कुंडली के किसी भी भाव में स्थित शनि देव की दशा अंतर्दशा जातक के लिए कष्टकारी होती हैं! वह अपनी क्षमतानुसार शुभ फल देतें हैं।
- छठे, आठवें और 12वें भाव में पड़ें शनिदेव विपरीत राजयोग में आकर शुभ फल देने में सक्षम होते हैं परन्तु इसके लिए लग्नेश बृहस्पति का बलि व शुभ दोनों होना अनिवार्य है।
- शनि देव का रत्न नीलम मीन लग्न वाले जातक को कभी भी नहीं पहनना चाहिए।
मीन लग्न में राहु ग्रह का फल
- राहु देव की अपनी कोई राशि नहीं होती वह अपनी मित्र राशि और शुभ भाव में ही शुभ फल देतें हैं।
- कुंडली के चौथे (उच्च राशि), सातवें और ग्यारहवें भाव में स्थित राहु देव अपनी दशा – अंतरा में अपनी क्षमतानुसार शुभ फल देते हैं।
- पहले, दूसरे, तीसरे, पांचवे, छठें, आठवें, नौवें (नीच राशि), दसवें (नीच राशि) और 12वें भाव के राहुदेव की दशा – अंतर दशा जातक के लिए कष्टकारी होती है वह अपनी क्षमतानुसार अशुभ फल देतें हैं।
- राहु देव का रत्न गोमेद कभी भी किसी जातक को धारण नहीं करना चाहिए।
- उनका दान-पाठ करके राहु देव की अशुभता को दूर की जाती है।
मीन लग्न में केतु ग्रह का फल
- केतु देवता की भी अपनी कोई राशि नहीं होती है वह भी अपनी मित्र राशि और शुभ भाव में शुभ फल देते हैं।
- कुंडली के सातवें, नौवें (उच्च राशि), दसवें (उच्च राशि) और ग्यारहवें भाव में स्थित केतु देवता अपनी दशा अंतर दशा में जातक को शुभ फल देते हैं।
- पहले, दूसरे, तीसरे, चौथे (नीच राशि), पांचवें, छठे, आठवें, बारहवें भाव के केतु देव की दशा – अंतरा जातक के लिए कष्टकारी होता है। क्योँकि इन भावों में वह अशुभ फल देते हैं।
- केतु देव का रत्न लहसुनिया कभी भी नहीं पहना जाता। बल्कि उनका पाठ व दान करके उनके मारकेत्व को कम किया जाता है।
मीन लग्न में धन योग
मीन लग्न में जन्म लेने वाले व्यक्तियों के लिए धनप्रदाता ग्रह मंगल है। धनेश मंगल की शुभाशुभ स्थिति, धन स्थान से संबंधित स्थापित करने वाले ग्रहों की स्थिति एवं धन स्थान पर पड़ने वाले ग्रहों के दृष्टि संबंध से जातक की आर्थिक स्थिति, आय के स्रोत तथा चल-अचल संपत्ति का पता चलता है। इसके अतिरिक्त पंचमेश चंद्रमा, लग्नेश बृहस्पति एवं लाभेश शनि की अनुकूल स्थितियां भी मीन लग्न वाले जातकों के लिए धन व ऐश्वर्य को बढ़ाने में सहायक होती हैं। वैसे मीन लग्न के लिए शनि, शुक्र, बुध और सूर्य अशुभ होते हैं। मंगल और चंद्र शुभ फलदायक होते हैं, अकेला गुरु राजयोग कारक होता है।
शुभ युति : गुरु + मंगल
अशुभ युति : गुरु + शुक्र
राजयोग कारक : गुरु व चन्द्र
- मीन लग्न में लग्नस्थ बृहस्पति यदि बुध एवं मंगल से युत या दृष्ट हो तो जातक महाधनशाली व्यक्ति होता है।
- मीन लग्न में मंगल मेष, वृश्चिक या मकर राशि का हो तो ऐसा जातक अल्पप्रयत्न से बहुत धन कमाता है। धन के मामले में ऐसा जातक भाग्यशाली कहलाता है।
- मीन लग्न में बृहस्पति लग्न में हो तथा बुध व शनि अपनी स्वराशि में हो तो ऐसा व्यक्ति धनवानों में अग्रगण्य होता है। लक्ष्मीजी जीवन भर हर कदम पर उसके साथ चलती हैं।
- मीन लग्न में मंगल यदि शनि के घर में एवं शनि मंगल के घर में परस्पर स्थान परिवर्तन करके बैठे हो तो ऐसा जातक महाभाग्यशाली होता है, एवं जीवन में खूब धन कमाता है।
- मीन लग्न में बृहस्पति केंद्र या त्रिकोण में कहीं भी हो तथा मंगल स्वगृही हो तो ऐसा जातक कीचड़ में कमल की तरह खिलता है, अर्थात निम्न परिवार में जन्म लेकर भी वे धीरे-धीरे अपने पुरुषार्थ के बल पर करोड़पति बन जाता है।
- मीन लग्न में पंचम में चंद्रमा स्वगृही हो तथा शनि मकर राशि का लाभ स्थान में स्वगृही हो तो जातक लखपति बनता है।
- मीन लग्न में कर्क का बुध पांचवे स्थान में तथा मकर का शनि लाभ स्थान में हो तो जातक बहुत धनी होता है।
- मीन लग्न में चंद्रमा पांचवे व गुरु स्वगृही बैठा हो तो जातक महाधनी होता है।
- मीन लग्न में यदि लग्न स्थान में बृहस्पति चंद्र एवं मंगल की युति हो तो “महालक्ष्मी योग” बनता है। ऐसा जातक प्रबल पराक्रमी, धनवान एवं ऐश्वर्यवान होता है।
- मीन लग्न में बृहस्पति मकर राशि में हो तथा शनि मीन राशि में हो तो जातक शत्रुओं का नाश करते हुए स्वअर्जित धनलक्ष्मी को भोगता है। ऐसा व्यक्ति जीवन में बहुत रुपया कमाता है।
- मीन लग्न में लग्नेश बृहस्पति, धनेश मंगल एवं लाभेश शनि अपनी अपनी उच्च या स्वराशि में स्थित हों तो जातक करोड़पति होता है।
- मीन लग्न में सप्तम भाव में राहु, शुक्र, मंगल और शनि की युति हो तो जातक अरबपति होता है।
- मीन लग्न में धनेश मंगल यदि आठवें हो किंतु सूर्य यदि लग्न को देखता हो तो ऐसे जातक को जमीन में गड़े हुए धन की प्राप्ति होती है या लॉटरी से रुपया मिल सकता है।
- मीन लग्न में मंगल यदि नवम भाव में वृश्चिक राशि का हो तो “रुचक योग” बनता है। ऐसा जातक राजा तुल्य जीवन जीता है एवं अथाह भूमि व संपत्ति का मालिक बनता है।
- मीन लग्न में सुखेश बुध, लाभेश शनि यदि नवम भाव में मंगल से दृष्ट हो तो जातक को अनायास ही धन की प्राप्ति होती है।
- मीन लग्न में धनेश मंगल अष्टम में एवं अष्टमेश शुक्र धन स्थान में परस्पर स्थान परिवर्तन करके बैठे हो, तो ऐसा जातक गलत तरीके जैसे- जुआ, सट्टा से धन कमाता है।
- मीन लग्न में लग्नेश गुरु धन भाव में हो एवं मंगल का लग्न से संबंध हो तो ऐसा जातक उच्च कोटि का व्यापारी होता है, एवं व्यापार से बहुत धन कमाता है।
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मीन लग्न में रत्न
रत्न कभी भी राशि के अनुसार नहीं पहनना चाहिए, रत्न कभी भी लग्न, दशा, महादशा के अनुसार ही पहनना चाहिए।
- लग्न के अनुसार मीन लग्न मैं जातक पुखराज, मूंगा, और मोती रत्न धारण कर सकते है।
- लग्न के अनुसार मीन लग्न मैं जातक को हीरा, पन्ना, माणिक्य, और नीलम रत्न कभी भी धारण नहीं करना चाहिए।
मीन लग्न में पुखराज रत्न
- पुखराज धारण करने से पहले – पुखराज की अंगूठी या लॉकेट को शुद्ध जल या गंगा जल से धोकर पूजा करें और मंत्र का जाप करके धारण करना चाहिए।
- कौनसी उंगली में पुखराज धारण करें – पुखराज की अंगूठी को तर्जनी उंगली में धारण करना चाहिए।
- पुखराज कब धारण करें – पुखराज को गुरुवार के दिन, गुरु के होरे में, गुरुपुष्य नक्षत्र को, या गुरु के नक्षत्र पुनर्वसु नक्षत्र, विशाखा नक्षत्र, पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र में धारण कर सकते है।
- कौनसे धातु में पुखराज धारण करें – सोने में या पंचधातु में पुखराज रत्न धारण कर सकते है।
- पुखराज धारण करने का मंत्र – ॐ बृ बृहस्पतये नम:। इस मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए।
- ध्यान रखे पुखराज धारण करते समय राहुकाल ना हो।
- नेचुरल और सर्टिफाइड पुखराज खरीदने के लिए यहाँ क्लिक करें या संपर्क करें 08275555557 पर सुबह 11 बजे से रात 8 बजे के बीच।
मीन लग्न में मूंगा रत्न
- मूंगा धारण करने से पहले – मूंगे की अंगूठी या लॉकेट को गंगाजल से अथवा शुद्ध जल से स्नान कराकर मंत्र का जाप करके धारण करना चाहिए।
- कौनसी उंगली में मूंगा धारण करें – मूंगे की अंगूठी को अनामिका उंगली में धारण करना चाहिए।
- मूंगा कब धारण करें – मूंगा को मंगलवार के दिन, मंगल के होरे में, मंगलपुष्य नक्षत्र को या मंगल के नक्षत्र मृगशिरा नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र या धनिष्ठा नक्षत्र में धारण कर सकते है।
- कौनसे धातु में मूंगा धारण करें – मूंगा रत्न तांबा, पंचधातु या सोने मे धारण कर सकते है।
- मूंगा धारण करने का मंत्र – ॐ भौं भौमाय नमः। इस मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए।
- ध्यान रखे मूंगा धारण करते समय राहुकाल ना हो।
- नेचुरल और सर्टिफाइड मूंगा खरीदने के लिए यहाँ क्लिक करें या संपर्क करें 08275555557 पर सुबह 11 बजे से रात 8 बजे के बीच।
मीन लग्न में मोती रत्न
- मोती धारण करने से पहले – मोती की अंगूठी या लॉकेट को शुद्ध जल या गंगा जल से धोकर पूजा करें और मंत्र का जाप करके धारण करना चाहिए।
- कौनसी उंगली में मोती धारण करें – मोती की अंगूठी को कनिष्का उंगली में धारण करना चाहिए।
- मोती कब धारण करें – मोती को सोमवार के दिन, चंद्र के होरे में, चंद्रपुष्य नक्षत्र में, या चंद्र के नक्षत्र रोहिणी नक्षत्र, हस्त नक्षत्र, श्रवण नक्षत्र में धारण कर सकते है।
- कौनसे धातु में मोती धारण करें – चांदी में मोती रत्न धारण कर सकते है।
- मोती धारण करने का मंत्र – ॐ चं चन्द्राय नमः। इस मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए।
- ध्यान रखे मोती धारण करते समय राहुकाल ना हो।
- नेचुरल और सर्टिफाइड मोती खरीदने के लिए यहाँ क्लिक करें या संपर्क करें 08275555557 पर सुबह 11 बजे से रात 8 बजे के बीच।
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सावधान रहे – रत्न और रुद्राक्ष कभी भी लैब सर्टिफिकेट के साथ ही खरीदना चाहिए। आज मार्केट में कई लोग नकली रत्न और रुद्राक्ष बेच रहे है, इन लोगो से सावधान रहे। रत्न और रुद्राक्ष कभी भी प्रतिष्ठित जगह से ही ख़रीदे। 100% नेचुरल – लैब सर्टिफाइड रत्न और रुद्राक्ष ख़रीदे, अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें
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One comment
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अच्छी जानकारी है पसंद आई आगे भी ऐसे ही जानकारी देते रहेंगे मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है डॉक्टर एस एल सुरेंद्र कौशिक धन्यवाद