नवमांश कुंडली सम्पूर्ण परिचय

Navmansha Kundli Sampurna Parichay
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नवमांश कुंडली विवेचना एवं निर्माण विधि

कुंडली के बारे में जानते-पढ़ते  समय नवमांश कुंडली का जिक्र आप लोगों ने कई बार सुना होगा। मन में ये प्रश्न अवश्य आया होगा कि ये नवमांश कुंडली आखिर है क्या  कई जिज्ञासु पाठक व कई मित्र जो ज्योतिष में रूचि रखते हैं वे कई बार आग्रह कर चुके हैं कि आप नवमांश कुंडली पर भी कुछ कहें। क्या होती है ?कैसे बनती है आदि।

सामान्यतः आप सभी को ज्ञात है कि  कुंडली में नवें भाव को भाग्य का भाव कहा गया है। यानि आपका भाग्य नवां भाव है। इसी प्रकार भाग्य का भी भाग्य देखा जाता है ,जिसके लिए नवमांश कुंडली की आवश्यकता होती है। जागरूक ज्योतिषी कुंडली सम्बन्धी किसी भी कथन से पहले एक तिरछी दृष्टि नवमांश पर भी अवश्य डाल चुका होता है।बिना नवमांश का अध्य्यन  किये बिना भविष्यकथन में चूक की संभावनाएं अधिक होती हैं। ग्रह का बलाबल व उसके फलित होने की संभावनाएं नवमांश से ही ज्ञात होती हैं। लग्न कुंडली में बलवान ग्रह यदि नवमांश कुंडली में कमजोर हो जाता है तो उसके द्वारा दिए जाने वाले लाभ में संशय हो जाता है।  इसी प्रकार लग्न कुंडली में कमजोर दिख रहा ग्रह यदि नवमांश में बली हो रहा है तो भविष्य में उस ओर से बेफिक्र रहा जा सकता है ,क्योंकि बहुत हद तक वो स्वयं कवर कर ही लेता है। अतः भविष्यकथन में नवमांश आवश्यक हो जाता है।

नवमांश कुंडली निर्माण विधि

नवमांश कुंडली का निर्माण कैसे होता है व नवमांश में ग्रहों को कैसे रखा जाता है। हम जानते हैं कि एक राशि अथवा एक भाव ३० डिग्री का विस्तार लिए हुए होता है। अतः एक राशि का नवमांश अर्थात ३० का नवां हिस्सा यानी ३.२ डिग्री। इस प्रकार एक राशि में नौ राशियों  नवमांश होते हैं। अब ३० डिग्री को नौ भागों में विभाजित कीजिये

पहला नवमांश          ०० से ३.२०

दूसरा नवमांश      ३. २० से ६.४०

तीसरा नवमांश     ६. ४० से १०.०० 

चौथा नवमांश          १०  से १३.२० 

पांचवां नवमांश      १३.२ से १६.४०

छठा नवमांश      १६.४० से २०.००

सातवां नवमांश   २०.०० से २३.२०

आठवां नवमांश   २३.२० से २६.४०

नवां नवमांश      २ ६.४० से ३०.००         

मेष -सिंह -धनु (अग्निकारक राशि) के  नवमांश का आरम्भ मेष से होता है।

वृष -कन्या -मकर  (पृथ्वी तत्वीय राशि ) के नवमांश  का आरम्भ मकर से होता है।

मिथुन -तुला -कुम्भ (वायु कारक राशि ) के नवमांश का आरम्भ तुला से होता है।

कर्क -वृश्चिक -मीन  (जल तत्वीय राशि ) के नवमांश  आरम्भ कर्क से होता है।  

इस प्रकार आपने देखा कि राशि के नवमांश का आरम्भ अपने ही  तत्व स्वभाव की राशि से हो रहा है। अब नवमांश राशि स्पष्ट करने के लिए सबसे पहले लग्न व अन्य ग्रहादि का स्पष्ट होना आवश्यक है। उदाहरण के लिए मानिए कि किसी कुंडली में लग्न ७:०३:१५:१४ है ,अर्थात लग्न सातवीं राशि को पार कर तीन अंश ,पंद्रह कला और चौदह विकला था (यानी वृश्चिक लग्न था ),अब हम जानते हैं कि वृश्चिक जल तत्वीय राशि है जिसके नवमांश का आरम्भ अन्य जलतत्वीय राशि कर्क से होता है। ०३ :१५ :१४  मतलब ऊपर दिए नवमांश चार्ट को देखने से ज्ञात हुआ कि ०३ :२० तक पहला नवमांश माना जाता है। अब कर्क से आगे एक गिनने पर (क्योंकि पहला नवमांश ही प्राप्त हुआ है ) कर्क ही आता है ,अतः नवमांश कुंडली का लग्न कर्क होगा। यहीं अगर लग्न कुंडली का लग्न ०७ :१८ :१२ :१२ होता तो हमें ज्ञात होता कि १६. ४० से २०. ०० के मध्य यह डिग्री  हमें छठे नवमांश के रूप में प्राप्त होती। अतः ऐसी अवस्था में कर्क से आगे छठा नवमांश धनु राशि में आता ,इस प्रकार इस कुंडली का नवमांश धनु लग्न से बनाया जाता।

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अन्य उदाहरण

मान लीजिये किसी कुंडली का जन्म लग्न सिंह राशि में ११ :१५ :१२ है (अर्थात लग्न स्पष्ट ०४ :११:१५ :१२ है )ऐसी अवस्था में चार्ट से हमें ज्ञात होता है कि ११ :१५ :१२ का मान हमें १०.०० से १३. २० वाले चतुर्थ नवमांश में प्राप्त हुआ। यानी ये लग्न का चौथा नवमांश है। अब हम जानते हैं कि सिंह का नवमांश मेष से आरम्भ होता है। चौथा नवमांश अर्थात मेष से चौथा ,तो मेष से चौथी राशि कर्क होती है ,इस प्रकार इस लग्न कुंडली की नवमांश कुंडली कर्क लग्न से बनती। इसी प्रकार अन्य लग्नो की गणना की जा सकती है।

इसी प्रकार नवमांश कुंडली में ग्रहों को भी स्थान दिया जाता है। मान लीजिये किसी कुंडली में सूर्य तुला राशि में २६ :१३ :०७ पर है (अर्थात सूर्य स्पष्ट ०६ :२६ :१३ :०७ है ) चार्ट देखने से ज्ञात  कि २६ :१३ :०७  आठवें नवमांश जो कि २३. २० से २६. ४० के मध्य विस्तार लिए हुए है के अंतर्गत आ रहा है। इस प्रकार तुला से आगे (क्योंकि सूर्य तुला में है और हम जानते हैं कि तुला का नवमांश तुला से ही आरम्भ होता है ) आठ गिनती करनी है। तुला से आठवीं राशि वृष होती है ,इस प्रकार इस कुंडली की नवमांश कुंडली में सूर्य वृष राशि पर लिखा जाएगा। इसी प्रकार गणना करके अन्य ग्रहों को भी नवमांश में स्थापित किया जाना चाहिये। 

ज्योतिष के विद्यार्थियों अथवा शौकिया इस शाश्त्र से जुड़ने वालों के लिए भी नवमांश का ज्ञान होना उन्हें अपने सहयोगी ज्योतिषी से एक कदम आगे रखने में बहुत मददगार साबित होगा ऐसा मेरा विश्वास है। बहुत सरल शब्दों में नवमांश का दिया गया ये उदाहरण आशा है आप सभी के लिये उपयोगी सिद्ध होगा।

कुंडली फलादेश मे नवांश का महत्व

नवांश लग्न मे ग्रह फल

  • सूर्य के नवांश मे  जातक लम्बे धुंघराले बाल वाला, सम शरीर, गौर वर्ण, गम्भीर, तेजस्वी, प्रेम मे कुशल, पाप रत, जिद्दी, साहसी, अत्यंत चंचल, धनवान, धर्म मे रत, क्रूर, शत्रुहंता, सुखी होता है।

अन्यच्च : सूर्य के नवांश मे जातक दुर्जनो को जीतने वाला, नीच, दुष्ट, टेड़े स्वभाव वाला, कुआचरणी होता है।

  • चंद्र के नवांश मे  जातक स्वर्ण कान्ति वाला, मध्यम कद, अल्प रोम वाला, अच्छे वस्त्र धारण करने वाला, सुदृष्टि, धन से परिपूर्ण, धर्माचरणी, गुणी, विषय सुख भोगने वाला, सुन्दर भवन वाला होता है।

अन्यच्च : चन्द्रमा के नवांश मे जातक बहुत अधिक धनवान, कृषि व जल से धनी, पुत्र से सुखी, अथिति प्रिय और सबका प्रिय होता है।

  • मंगल के नवांश मे  जातक सुनहरे बाल वाला, गोल नेत्र वाला, गौरवर्ण, बुरे नख, कोमल पीठ, सिर पर धाव या व्रण के चिन्ह, कामी, बलवान, द्वेषी, धूर्त, स्त्री धन संग्रही, धर्म को कम मानने वाला, क्रूर, कंजूस होता है। मंगल के नवांश मे जातक दुखो से युक्त, पित्त ज्वर से पीड़ित, नेत्र रोगी, प्रताप हीन, हमेशा मेले वस्त्र पहिनने वाला होता है।
  • बुध के नवांश मे जातक श्यामवर्णी, चंचल नेत्र वाला, सम शरीर, चौड़ा वक्षस्थल, दुबला, व्यापारी या क्रय-विक्रय निपुण, धैर्यवान, धनवान, दिव्य वस्त्र और आभूषण धारण करने वाला होता है।

अन्यच्च : बुध के नवमांश में जातक बहुत धन से युक्त, मेघावी, सर्वसुख संपन्न, विवेकशील, पण्डित अल्प शत्रु वाला या शत्रु रहित होता है।

  • गुरु के नवांश मे सुगठित देह, कमल के समान पेट, सुमुखी, नीले नेत्र, लम्बे डीलडोल वाला, सुन्दर हस्त, स्वच्छ हस्त रेखाए, बुद्धिमान, गुणवान, अथिति प्रिय, धनवान, स्र्त्रियो का प्रिय, मधुर भाषी होता है। गुरु के नवांश मे जातक  पुत्रवान, धनवान , गीत संगीत मे निपुण, मनुष्यो मे पूजनीय होता है।
  • शुक्र के नवांश मे जातक काळा सुन्दर नेत्र वाला, सुन्दर केश, रक्त वर्ण, व्याकुल चित्त, धब्बेदार गर्दन, सुन्दर अच्छी नाभि, शूर, श्रीमान, सुशील, प्रेम मे कुशल, कवि, दानशील, वस्त्र अलंकार से संतुष्ट, कोमल होता है। शुक्र के नवांश मे जातक बहु पुत्रवान, गुणवान, समृद्धिशाली, दिव्य व सुन्दर स्त्रियो से सहयोग व सहवास सुख भोगने वाला होता है।
  • शनि के नवांश मे जातक विरल रोम की शोभा वाला, भूरे दुबले अंग वाला, मुखर नेत्र, श्याम वर्ण, स्वतंत्र, अनेक गुणो से परिपूर्ण, पापाचारी, धर्म से विमुख, सीमित धन को भोगने वाला होता है। शनि के नवांश मे जातक बहुत भूमि व धन नाश करने वाला, न्याय मे अत्यंत उग्र, अच्छी तरह जीवन व्यापन करने वाला होता है। चोरी या मुकदमे मे धन नाश होता है।

अन्य अलग-अलग नवमांश के फल

जातक के वर्ण, आकृति, स्वभाव आदि के लक्षणो का विवेचन।

मेष नवांश

  • मेष के पहले नवांश मे मध्यम कद, छोटी नाक, बकरे जैसा मुंह, छोटी भुजा, कर्कश आवाज, संकुचित नेत्र, कृश, धायल अथवा नष्ट अंग वाला होता है।
  • मेष के दूसरे नवांश मे श्यामवर्ण, लम्बी भुजा, छोटा ललाट, खिले नेत्र, लंबी नाक, मधुर वाणी वाला होता है।
  • मेष के तीसरे नवांश मे काळा, बिखरे बाल, लम्बी भुजा, सुन्दर नेत्र और नाक, वाकपटु, गौरवर्ण, पतली जाँघे और पतले नितम्ब वाला होता है।
  • मेष के चौथे नवांश मे व्याकुल नेत्र, ठिगना, साहसी, नट अथवा नृत्यक, भ्रमण शील, खुरदरे नख, कड़े व विरल रोम,  बिना भाई के होता है।
  • मेष के पांचवे नवांश मे अहंकारी, सिंह के समान नेत्र, बड़ा मुख, मोटी नाक, आगे की ओर फैला चौड़ा शरीर, चौड़ा ललाट, धनी भोंहे, धने व पतले रोम वाला होता है।
  • मेष के छठे नवांश मे श्याम वर्ण, मृग समान नेत्र, पतली कमर, कठोर पंजे, मोटा पेट, मोटी भुजा व कंधे, डरपोक और अधिक बोलने वाला होता है।
  • मेष के सातवे नवांश मे कड़े रोम वाला, चंचल, धवल नेत्र, कुलटा  का पति, हत्यारा, विशाल शरीर वाला होता है।
  • मेष के आठवे नवांश मे वानर मुखी, भूरे केश, गुप्त रोग से रोगी, हिंसक, असत्यवादी, धातादिक योग, मित्र से सदव्यवहारी होता है।
  • मेष के नौवे नवांश मे लम्बा, कृश, धूमने-फिरने वाला, चौड़ा ललाट, लम्बे कान. अश्वमुखी, अनेक उपाधिया प्राप्त, बहुरुपिया, निर्मम, निर्दयी होता है।

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वृषभ नवांश

  • वृषभ के पहले नवांश मे श्याम वर्ण, साहसी, नीच, प्रकृति विरुद्ध, विषम नेत्र व दृष्टि वाला होता है।  जातक की मृत्यु मघा नक्षत्र के अंत मे या रेवती नक्षत्र मे होती है।
  • वृषभ के दूसरे नवांश मे गंभीर नेत्र, टेड़ा मुख, आत्मा से द्रवित, अल्पबुद्धि, प्रतिकूल कर्म करने वाला, असत्य और अधिक बोलने वाला होता है।
  • वृषभ के तीसरे नवांश मे कोमल अंग, सुन्दर शरीर, अच्छी नाक, स्पष्ट व बड़े नेत्र, धर्म और यज्ञ कार्यो मे रुचिवान, स्थिर, पालन पोषण करने वाला होता है।
  • वृषभ के चौथे नवांश मे ठिगना, मेढे समान नेत्र, पिंगल वर्ण,  उदार,क्रोधी, धनवान, पर धनहर्ता होता है।
  • वृषभ के पांचवे नवांश मे दुष्ट, ऊँची नाक, भैसे समान मुख, धने केश, विलासी, वृहद भुजा, कंधे वाला होता है।
  • वृषभ के छठे नवांश मे दीर्घ नेत्र, कोमल शरीर, सुन्दर केश, मोहक वाणी, माधुर्य व हास्य रस मे रत, कृश,  बातुनी, निपुण होता है।
  • वृषभ के सातवे नवांश मे मृत पुत्र वाला, युवतियो मे रत, लम्बी लटकती नाक, विशाल नेत्र, बड़े अंग, बडे  पैर, स्वजनों से द्वेष, छोटे बाल वाला होता है।
  • वृषभ के आठवे नवांश मे व्याघ्र के समान नेत्र, सुन्दर दांत, चौड़ी नाक, अल्पकर्मी, अहंकारी, भूरे बाल, कड़े बड़े नख, बातुनी होता है।
  • वृषभ के नौवे नवांश मे सम्मानीय, अल्प साहसी , क्रोधी, डरपोक, दुबला-पतला, जुआरी, धनसंचयी, कुंठाग्रस्त, एकहरा बदन वाला, वछ (दुःख) से प्रलाप करने वाला होता है।

मिथुन नवांश

  • मिथुन के पहले नवांश मे लम्बे धने रोम, बड़े कंधे व भुजा, मयूर समान नेत्र, ऊँची नाक, दूर्वा के समान अस्थिया (हड्डिया) श्याम वर्ण, पतले हस्त होते है।
  • मिथुन के दूसरे नवांश मे घट के समान सिर, धार्मिक, नासिका के मध्य चोंट लगना, वाचाल, क्रिया शील, हिंसक, सेनापति होता है।
  • मिथुन के तीसरे नवांश मे गौर वर्ण, रक्त वर्ण नेत्र, सम शरीर, अच्छी बुद्धि, लम्बा मुख, धनी तीखी भोंहे, प्रभावी और चातुर्यपूर्ण वाणी होती है। 
  • मिथुन के चौथे नवांश मे इकहरा बदन, सुन्दर भोंहे व ललाट, कमल समान नेत्र, बड़े वक्ष वाला, सुन्दर मुख, कोमल वाणी, अच्छे रोम वाला है।
  • मिथुन के पांचवे नवांश मे बड़ा मुख, मोटी कमर, बड़ा वक्ष वाला, लम्बी भुजाए, स्थूल सिर, दुष्ट, कपटी होता है। जातक की आँखों से मन की बात जानना कठिन होता है।
  • मिथुन के छठे नवांश मे मादक नयन, चौड़ा ललाट, सम बलिष्ठ शरीर, दुष्ट, जुआरी, गुलाबी होंठ, पीले दांत, निरर्थक प्रलापी (चीखना-चिल्लाना) होता है।
  • मिथुन के सातवे नवांश मे ताम्र वर्ण, अरुण समुन्नत नेत्र, विशाल वक्ष, शिक्षा व कला मे निपुण, मजाकी स्वभाव का  होता है।
  • मिथुन के आठवे नवांश मे श्याम वर्ण, मनस्वी (मनन-चिंतन-विचार) सुन्दर मधुर भाषी, कलाविद होता है।
  • मिथुन के नौवे नवांश मे गोल श्वेत नेत्र, सुन्दर देह, निपुण, मेधावी, प्रेमी, रति कार्य दक्ष, कला, साहित्य, विज्ञान व काव्य का ज्ञाता होता है।

कर्क नवांश

  • कर्क के प्रथम नवांश मे स्वच्छ सुन्दर गौर वर्ण, बड़ा पेट अथवा कमर, दिव्य आभा युक्त चेहरा, बड़े नेत्र, सुन्दर केश, छोटी भुजा वाला होता है।
  • कर्क के द्वितीय नवांश मे लाल गुलाबी कान्ति वाला, विवाह हेतु धूमने वाला, वजन ढोने वाला, कला प्रिय, विलाव जैसा चेहरा वाला, लम्बे पतले घुटने व जांघ वाला होता है।
  • कर्क के तृतीय नवांश मे गौर वर्ण, सुकुमार, कोमल देह वाला, युवती सरीखे पुष्ट व सुडोल अंगो वाला, बुद्धिमान, मधुर वाणी युक्त, आलसी किन्तु  प्रभावी वक्ता होता है।
  • कर्क के चतुर्थ नवांश मे श्याम वर्ण, धनुषाकार भोंहे, विलासी, सुन्दर आंख व नाक, स्थूल देह, क्षीण भाग्य, जाति और बंधु का हित करने वाला होता है।
  • कर्क के पंचम नवांश मे घड़ियाल समान सिर वाला, बाकी तिरछी भोंहे, लम्बी भुजाए, अल्पबुद्धि, सेवारत, दुष्कर्मी, असहनशील होता है।
  • कर्क के षष्ठ नवांश मे लम्बा, स्थूल देह, प्रशंसनीय नेत्र, अधिक प्रतापी, गौर  वर्ण, सुन्दर नाक, वक्ता होता है।
  • कर्क के सप्तम नवांश मे छितरे अल्प रोम, स्थूल देह, दीर्घ सिर व जांघ, रक्षक अथवा चौकीदार, कौवे के सामान सावधान, स्फूर्तिवान होता है।
  • कर्क के अष्टम नवांश मे घंटे समान सिर वाला, कुशिल्पी, सुन्दर मुख व भुजा, कछुवे के समान चाल वाला, मध्य मे चपटी नाक वाला, श्याम वर्णी होता है।
  • कर्क के नवम नवांश मे गौर वर्ण, मछली के समान नेत्र, कोमल, उदार, बड़ा वक्ष, लम्बी ढाढी, पतले होंठ, बड़ी जांघे, पतले घुटने और ऐड़ी वाला होता है।

सिंह नवांश

  • सिंह के प्रथम नवांश मे मंद उदर अग्नि, साहसी, नासिका का लाल अग्रभाग, बड़ा सिर, शूरवीर, उन्नत मांसल वक्ष, आक्रामक, प्रेमी होता है।
  • सिंह के द्वितीय नवांश मे उन्नत चौड़ा ललाट, चार कोने वाला शरीर, दीर्घ नेत्र, लंबी भुजा, उन्नत वक्ष होता है।
  • सिंह के तृतीय नवांश मे धने रोम, चकोर नेत्र, चंचल, त्यागी, ऊँची नाक, कोमल शरीर व भुजा, गोल गले वाला, मोह ममता से परे होता है।
  • सिंह के चतुर्थ नवांश मे चिकनी तेलीय त्वचा, गौर वर्ण, लंबे सुन्दर नेत्र, कोमल केश, बेसुरी आवाज, बड़े हाथ और पैर, मेढक के समान पेट, खुराक कम होती है।
  • सिंह के पंचम नवांश मे घण्टानुमा सिर,  अल्प केश, श्वेत आंख व नाक, लोमड़ी समान शरीर, लम्बा पेट, साहसी, मोठे तीखे दांत वाला होता है।
  • सिंह के षष्ठ नवांश मे अल्प रोम, मटमैले नेत्र, लम्बा, श्याम वर्णी, स्त्री सुलभ सौन्दर्य युक्त, चतुर, शेखी मारने वाला, कार्य साधने मे निपुण होता है।
  • सिंह के सप्तम नवांश मे लम्बा मुंह, लम्बे मोटे सिर वाला, हृष्ट पुष्ट मांसल देह, स्त्रियो से कपटी, श्याम वर्ण, कूटनीतिज्ञ, धने रोम वाला, कठोर भाषी, ठग होता है।
  • सिंह के अष्टम नवांश मे शिष्ट भाषी, स्थिर अंग, सुभग, गंभीर स्वभाव किन्तु कपट दृष्टि, निषिद्ध कर्म करने वाला, कंगाल, गुप्तचर, कूटकर्म करने में निपुण होता है।
  • सिंह के नवम नवांश मे गधर्भ मुखी, मटमैले नेत्र, लंबी भुजा, सुन्दर ऐड़ी, जांघ, पतली कमर, दमा रोगी होता है।

कन्या नवांश

  • कन्या के प्रथम नवांश मे मृग समान नेत्र, वक्ता , लम्बा कद, दान उपभोग करने वाला, धनवान, सुन्दर होता है।
  • कन्या के द्वितीय नवांश मे गोल मुख, सुन्दर नेत्र, कोमल वाणी, जिंदादिल, चंचल, बड़ी जाँघे वाला होता है।
  • कन्या के तृतीय नवांश मे चौड़ी नाक, उभार युक्त रंध्र, उच्च स्वर, खूबसूरत पैर, प्रत्यक्ष कांतिवान, गोरा होता है।
  • कन्या के चतुर्थ नवांश मे स्त्रियो मे प्रसिद्ध और रमन करने वाला, सुकुमार, गौरवर्णी, सत्यज्ञान का जानकर, तीक्ष्ण, कृश, दो सिर वाला होता है।
  • कन्या के पंचम नवांश मे मोटे होंठ, लम्बा शरीर, लम्बी भुजाएँ, लम्बे कठोर बाल, चौड़ा वक्ष, पर आश्रित (छत्र-छाया) मोटी जाँघे वाला होता है।
  • कन्या के षष्ठ नवांश मे मनोहर कांतिवान, सुवक्ता, उत्तम शरीर, आकर्षक रूपरंग, शास्त्रज्ञ, लिपि और लेखन का ज्ञाता, भ्रमणशील, अच्छे मन वाला होता है।
  • कन्या के सप्तम नवांश मे छोटा मुख, ऊँचे कंधे, कोमल हथेली, भूरे केश, तीव्र पाचन शक्ति वाला, लम्बे पैर, पानी से डरने वाला होता है।
  • कन्या के आठवे नवांश मे सुकुमार, उन्नत नेत्र, गौर वर्ण, लम्बी मोटी भुजाए, सुनहरे रोम, चिड़चिड़ा, आक्रामक, स्वाभिमानी होता है।
  • कन्या के नवम नवांश मे प्रसिद्ध, कोमल नेत्र, झुके कंधे, मन्त्र विद्या का ज्ञाता, भूख प्यास नही महसूस करने वाला  साहसी, चतुर, लेख आदि मे विद्वान होता है।

तुला नवांश

  • तुला के प्रथम नवांश मे गौर वर्ण, बड़े नेत्र, लम्बा मुख, धन रक्षक, रहस्यमयी बाते छिपाने मे प्रवीण, नए व्यापार मे कुशल, विख्यात होता है।  
  • तुला के द्वितीय नवांश मे गोल सजल नेत्र, दबी-बैठी कमर, विस्मृत हृदयी, कृश शरीरी, धनी भोंहे वाला, विचारो मे मग्न रहता है।
  • तुला के तृतीय नवांश मे गौर वर्ण, अश्व मुखी, सुन्दर पंक्तिबद्ध दांत, बड़े उन्नत नेत्र, मेघावी, यशस्वी, सुन्दर हाथ, पैर, नाक वाला होता है।
  • तुला के चतुर्थ नवांश मे पतले दुर्बल कंधे व भुजा, डरपोक, टेड़े दांत, कृश शरीर, मृग समान चमकीले नेत्र, छोटी नाक, दुःखी, सदव्यवहारी होता है।
  • तुला के पंचम नवांश मे गंभीर नेत्र, स्थिर आत्मा, प्रिय मित्रवान, धने रूखे केश, चपटी नाक वाला होता है।
  • तुला के षष्ठ नवांश मे  गौर वर्ण, बड़े नेत्र, सुन्दर नाक, कोमल चिकने नख, अच्छे वंश का, नीतिज्ञ, विद्वान, विविध विषयो का ज्ञाता, शास्त्रज्ञ होता है।
  • तुला के सप्तम नवांश मे खूबसूरत, मध्यम कद, पतला या छोटा ललाट, लोभी, ज्ञानी, साहसी, मनस्वी होता है।
  • तुला के अष्टम नवांश मे  ऊँचे कंधे व गाल, विषम शरीर, लम्बी काली भोंहे, स्पष्ट वक्ता, शांत, सुडोल वक्ष, दीर्घ मस्तिष्क वाला होता है।
  • तुला के नवम नवांश मे स्वाभाविक नेत्र वाला, प्रसन्नचित्त, गौर वर्ण, सम सुन्दर शरीर, कला मे रत, नम्र, मजाकी स्वभाव वाला, वेश्या को रखने वाला होता है।

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वृश्चिक नवांश

  • वृश्चिक के पहले नवांश मे छोटे होंठ,  स्थूल अधर, सुन्दर नाक, सुन्दर ललाट, गौर वर्ण, दृढ़ अंग, मेढक समान पेट, प्रधान होता है। 
  • वृश्चिक के दूसरे नवांश मे लम्बी भुजाए, चौड़ा वक्ष, लाल उग्र नेत्र, बलवान का वध करने वाला (हत्यारा) साहसी कर्म करने वाला, अल्प केश वाला होता है।
  • वृश्चिक के तीसरे नवांश मे बुद्धिमान, दृढ़ कंधे व भुजा, धन हेतु प्रयत्न शील, स्पष्ट भाषी, अविवाहिता की संतान, सुन्दर, गौर वर्ण, कोमल होंठ वाला होता है।
  • वृश्चिक के चौथे नवांश मे दूसरे की स्त्री के साथ विश्वास धाती , भ्रमण शील, श्याम वर्णी, धैर्यवान, असित नेत्र, नट, साहसी, मोटे रोम वाला होता है।
  • वृश्चिक के पांचवे नवांश मे लाल नेत्र, चपटी नाक, धैर्यवान, सुपाचन वाला, बड़ा पेट, उग्र कर्म करने वाला, चौड़े दृढ़ अंग, यशस्वी होता है।
  • वृश्चिक के छठे नवांश मे धूर्त, सुबुद्धि, ऊंची सुन्दर नाक, गंभीर, साहसी, सुकर्मी, निपुण, अल्प केश, धनी भोंहे वाला होता है।
  • वृश्चिक के सातवे नवांश मे विदीर्ण मुख, चौड़े दांत, स्थिर अंग, चौड़ा सिर, जुड़े अंगो वाला, छोटा पेट, बड़े नेत्र, ढीला शरीर (योन दुर्बलता या नपुसंकता) वाला होता है।
  • वृश्चिक के आठवे नवांश मे नासिका का चौड़ा अग्रभाग, काल एवम विपत्ति युक्त, काळा अंग वाला, विभाजित धने बाल, परीतक्या बुद्धि वाला होता है।
  • वृश्चिक के नौवे नवांश मे गौर वर्ण, मृग सामान सुन्दर पुष्ट देह वाला, शांतचित्त, सुन्दर पीले नेत्र, भूरे केश, दृढ़ शरीर, गुरुजनो द्वारा सम्मानित होता है।

धनु नवांश

  • धनु के पहले नवांश मे दूरदर्शी, स्पष्ट भाषी, सुन्दर दांत व नेत्र, गौर वर्ण, बुद्धिमानो मे प्रधान, खरी-खरी बात कहने वाला, कपटी, साहसी होता है।
  • धनु के दूसरे नवांश मे ऊँचा सिर, स्थिर, दीर्घ नेत्र, मोटी जांघे, विकृत नाक, स्थूल नितम्ब, लम्बी देह, बड़ी दाढ़ी वाला, धीर, गंभीर होता है।
  • धनु के तीसरे नवांश मे सुन्दर नयन, शिक्षा शास्त्री, गंभीर, नीतिज्ञ, स्त्री प्रिय, मनस्वी, हास्य कलाकार होता है।
  • धनु के चौथे नवांश मे निपुण, मादक गोल नेत्र, गौर वर्ण, पीड़ित, बड़ा पेट, भ्रमणशील, सुन्दर मूर्ति होता है।
  • धनु के पांचवे नवांश मे सिंह समान देह, बड़ा कंठ व मुख तथा नेत्र वाला, बड़ी भोंहे, ऊँचे कंधे, धने रोम, विध्वंसकारी, अहंकारी, दृढ़ बुद्धि वाला होता है।
  • धनु के छठे नवांश मे कोमल व गोरा, चौड़े करुणा युक्र नेत्र, दीर्घ ललाट, चौड़ा मुख, सुआचरणी, काव्यगत, त्यक्त, मंद भाग्य वाला, विद्वान कथाकार होता है।
  • धनु के सातवे नवांश मे श्याम वर्ण कोमल वाणी, ऊँचा सिर, संग्रही, गुप्त योजना वाला, लम्बा, बड़े नेत्र, काम निकलने मे चतुर, ज्येष्ठ स्त्रियो (उम्र में अधिक) से कोमल व्यवहार रखने वाला होता है।
  • धनु के आठवे नवांश मे नाक का अग्र भाग चपटा, चौड़ा सिर, शत्रुवान, व्याकुल नेत्र, प्रलापी, झगड़ालू होता है।
  • धनु के नौवे नवांश मे सौम्य, गौर वर्ण, अश्व मुखी, असित नेत्र, सत्यवादी, स्त्री से दुःखी, उद्विग्न,व्यग्र होता है।

मकर नवांश

  • मकर के प्रथम नवांश मे आगे के छिदे दांत, श्याम वर्ण, मोटी फटी आवाज, धने केश, ख़राब नख, दुबला, विनोदी, गीतकार, शक्तिशाली होता है।
  • मकर के द्वितीय नवांश मे आलसी, धूर्त, टेडी नाक वाला, गीत मे रत, विशाल देह, बहुत स्त्रियो से प्रेम करने वाला, बकवादी, दृढ़ प्रतिज्ञा वाला होता है।
  • मकर के तृतीय नवांश मे गायक, कलाकार, सुन्दर अंग, भूरे नेत्र, सुन्दर नाक, बहुत मित्र और बंधु वाला, इष्ट कर्म करने वाला होता है।
  • मकर के चतुर्थ नवांश मे श्वेत गोल नेत्र, चौड़ा ललाट, लम्बी भुजा, दुर्बल देह अंग, बिखरे केश, छिदे दांत, अटक-अटक कर बोलने वाला (तोतला) होता है।
  • मकर के पंचम नवांश मे ऊँची नाक, सुन्दर, सुवंशी, बड़ा पेट,श्याम वर्ण, गोल भुजाए व जांघ वाला, कार्य पूर्ण कर चेन लेने वाला, प्रतिज्ञावान होता है।
  • मकर के षष्ठ नवांश मे कोमल कांति, पतले होंठ, बड़ी दाढ़ी, चौड़ा  ललाट, कामी, सुवक्ता, सुन्दर वेशी होता है।
  • मकर के सप्तम नवांश मे कला रंग, सुभाषी, अलसी, कठोर बड़ा शरीर, कोमल हाथ और पैर, बुद्धिमान, सदाचारी, सुशील, संपन्न होता है।
  • मकर के अष्टम नवांश मे गंभीर नेत्र, सुन्दर नाक, प्रेमी, रूखे नख, छिदे बाल, बड़ा गोल ललाट, बड़ा शरीर, निश्छल दृष्टि, शक्तिशाली  होता है।
  • मकर के नवम नवांश मे बड़े नेत्र, सुबुद्धि को ग्रहण करने वाला, गोल चेहरा, गीत व संगीत मे रत, कोमल, सात्विक वृत्ति वाला, साहसी, सज्जन होता है।

कुम्भ नवांश

  • कुम्भ के पहले नवांश मे श्याम वर्ण, कोमल पतले अंग, मोटी दाढ़ी, शास्त्र और काव्य की बुद्धि वाला, स्त्रियो मे प्रिय, भावुक, कोमल होता है।
  • कुम्भ के दूसरे नवांश मे कांपती हुई दृष्टि (त्वडं दृष्टि) कठोर नख, आपत्ति से निडर, सज्जन, बड़ा सिर, साधु स्वभाव, दीन दुःखी का आश्रयदाता, मुर्ख जैसा होता है।
  • कुम्भ के तीसरे नवांश मे मिला हुआ शरीर, सुंदरियो का प्रिय वैदूर्य के समान कांति वाला, शास्त्रज्ञ एवं शास्त्र का प्रयोग करने वाला होता है।
  • कुम्भ के चौथे नवांश मे स्रियो मे अनुरक्त, बड़ा मुख, गौर वर्ण, धीर, वीर, शत्रुहंता, भोग-विलाश मे रत होता है।
  • कुम्भ के पांचवे नवांश मे स्पष्ट ज्ञान वाला, कठोर अधर व पैर, गड्ढेदार कपोल, अवरुद्ध कर्ण (कम सुनने वाला) सांवला रंग का होता है।
  • कुम्भ के छठे नवांश मे व्याघ्र मुखी, साहसी, घुंघराले बाल वाला, निश्चित अर्थ का ज्ञाता, हिंसक जंतु (शेर, चिता, सांप, रीछ आदि) को मारने वाला, राज्य प्रिय होता है।
  • कुम्भ के सातवे नवांश मे मेमने के समान मुख और नेत्र वाला, स्त्रियो से अश्लील प्रेम करने वाला, भीड़-भाड़ से दूर रहने वाला, अपमानित, पित्त से पीड़ित, साहसी व धैर्यवान होता है।
  • कुम्भ के आठवे नवांश मे स्थिर सत्वबुद्धि वाला, राजा प्रेमी, सैन्याधिकारी, सुभग, मोटे दांत, बड़े नेत्र, मैत्रीपूर्ण स्वाभाव वाला, स्नेहशील होता है।
  • कुम्भ के नौवे नवांश मे श्यामवर्ण, गोलमुख, उत्कृष्ट, सुन्दर सुपुष्ट देह, स्त्री और पुत्रवान, सुवक्ता, प्रसिद्ध होता है।

मीन नवांश 

  • मीन के प्रथम नवांश मे गौर रक्त वर्ण, बुद्धिमान, पत्नी कोमलांगी, चंचल चित्त, छोटा गला, पतली कमर वाला, आशावादी, उत्साही होता है।  
  • मीन के दूसरे नवांश मे मोटी चौड़ी भोंहे व नाक, धार्मिक कार्य में निपुण, क्रिया पटु, मांसाहारी, सुन्दर देह, बड़ा देह, जंगल-पर्वत विचरण करने वाला होता है।
  • मीन के तीसरे नवांश मे गौर वर्ण, सुन्दर नेत्र, सुन्दर आकर्षक देह, धैर्यवान, विद्वान, नम्र, विनीत, रूपवान, चतुर, कृपालु होता है।
  • मीन के चौथे नवांश मे गुणवान, विपत्तिशील, सहायता सेवा करने वाला, धार्मिक कार्य मे निपुण, विद्वान्, साहसी, नीतिज्ञ, ऊँची नाक वाला होता है।
  • मीन के पांचवे नवांश मे लम्बा काला वर्ण, प्रतापी, ऊँचे अंग, छोटी नाक, स्वाभाविक नेत्र, हिंसापूर्ण या आध्यात्मिक कार्यो मे सलग्न, असह्य होता है।
  • मीन के छठे नवांश मे कोमल साहसी, गुणवान, प्रसिद्ध, अंगो में दोष या वक्रता, छोटी नासिका, अभिमानी, टेड़ा मुख, निपुण होता है।
  • मीन के सातवे नवांश मे अभिमानी, नास्तिक, श्रेष्ट, सचिव या सलाहकार, हठी, मंत्री, बलवान, दुःखी, धूर्त, अस्थिर, उद्विग्न, दुविधाग्रस्त होता है।
  • मीन के आठवे नवांश मे लम्बा, बड़ा सिर, सुस्त, दुबला, आलसी, रूखे नेत्र और केश, पुत्र सुख से हीन, धनवान, लड़ाई-झगड़ा करने मे कुशल होता है।
  • मीन के नौवे नवांश मे ठिगना, कोमल, धैर्यवान, दीर्घ वक्ष, आँख, नाक वाला, व्यवस्थित अंग, प्रसिद्ध, बुद्धिमान, गुणवान, यशस्वी होता है।

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समस्त ग्रहो के नवांश मे सूर्य फल

  • सूर्य के नवांश मे सूर्य फल जातक अभिमानी, कम सुखी, कलह प्रिय, ढीढ, चालक, प्रभावहीन, पराधीन, अनेक रोगो से ग्रस्त होता है।
  • चंद्र के नवांश मे सूर्य फल जातक निपुण, ज्ञानी, पुत्रवान, यशस्वी, धनवान, उच्च अधिकारियो का प्रिय, स्व पक्ष मे प्रधान होता है।
  • मंगल के नवांश मे सूर्य फल  जातक दरिद्र, रोगी, अपमानित, दीन-दुःखी, वायु रोग से पीड़ित, पाप कर्म मे रत, स्रियो का उपपति होता है।
  • बुध के नवांश मे सूर्य फल जातक वात रोगी, शत्रुहंता, पुत्री से विशेष स्नेह करने वाला, सहज सुखी, भोग सुख में लिप्त रहने वाला  होता है।
  • गुरु के नवांश मे सूर्य फल जातक सत्यवादी, धनवान, तप मे अनुरक्त, आस्तिक, पुरूषार्थी, जितेन्द्रिय, सर्व सुख सम्पन्न होता है।
  • शुक्र के नवांश मे सूर्य फल जातक वाहन युक्त, कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाला, बन्धुजनो मे प्रधान, विवेकी, धार्मिक, साहसी, शत्रु पक्ष को जीतने वाला होता है।
  • शनि के नवांश मे सूर्य फल जातक पराजित, निर्धन, अल्प शांति वाला (अधीर) कामी, बंधुओ से रहित, दुष्ट, दुर्गति को प्राप्त, रोगी होता है।

सूत्र यदि जन्मांग मे उच्च का सूर्य नवांश मे नीच का हो, तो राज पुत्र भी निर्धनता और दरिद्रता को प्राप्त होता है।  (राजयोग भंग होता है।) यदि नवांश का सूर्य शक्तिशाली हो, तो जातक मनोहर, विचित्र माला और आभूषणो से युक्त, सुखी, शांतचित्त, निरोगी सुशील होता है। यदि सूर्य का नवांश या सूर्य नवांश मे बलहीन हो, तो जातक का प्रियजनो से वियोग होता है। जातक विष, अग्नि, शस्त्र, ज्वर, पित्त से पीड़ित,  माता-पिता का अपमान करने वाला है।

समस्त ग्रहो के नवांश मे चंद्र फल

  • सूर्य के नवांश मे चंद्र फल जातक दुष्ट, चंचल, आचार भ्रष्ट, पापी, अल्प या नष्ट बुद्धि, शत्रु से पराजित होता है।
  • चंद्र के नवांश मे चंद्र फल जातक  रूपवान, सुभग, सुशील, स्त्री का सम्मान करने वाला, सर्वगुण सम्पन्न, विद्या विनित,  मनुष्यो को प्रिय होता है।
  • मंगल के नवांश मे चंद्र फल जातक नेत्र  रोगी, दुबला, रोगी, अल्प साहसी, असफल, प्रेमी, अभागा होता है।
  • बुध के नवांश मे चंद्र फल जातक सौम्य, सुखी देव, गुरु मे आसक्त, धनवान, यथार्थ ज्ञान मे पंडित, प्रसन्नचित्त गरिमायुक्त होता है।
  • गुरु के नवांश मे चंद्र फल जातक नीतिज्ञ, सत्यवादी, विद्या विनित, मित्रो मे श्रेष्ठ, गुरुजनो और विद्वानो का  कृपा भाजक होता है। रोग एवम भय व्याप्त रहता है।
  • शुक्र के नवांश मे चंद्र फल जातक बहुत अधिक धनवान, पुण्य कमाने वाला, आथित्य प्रेमी, सुन्दर होता है।
  • शनि के नवांश मे चंद्र फल जातक नवीन उपाधि प्राप्तक, अत्यंत कठोर बोलने वाला, विकृत स्वभाव वाला, पर धन लोभी, व्यसनी होता है।

सूत्र चंद्र का नवांश या चंद्र नवांश मे चंद्र बलवान हो, तो जातक पुत्र, और वाहन से युक्त, सुकुमार देह वाला, निरोगी, सर्वकला सम्पन्न होता है। चंद्र का नवांश या चंद्र नवांश मे चन्द्रमा बलहीन होने पर जातक नीतिहीन, दुष्ट, भीरु, दुःखी, कृतघ्न राजा से दण्डित होता है।

समस्त ग्रहो के नवांश मे मंगल फल

  • सूर्य के नवांश मे मंगल फल जातक लोभी, बुरी स्त्री के वशीभूत या युवती से धायल, अधिक खाने वाला, भूक्कड़, अल्प सुखी, हृदय रोगी, धूर्त होता है।
  • चंद्र के नवांश मे मंगल फल जातक सुन्दर, सुख और सम्मान से युक्त, मित्र, ब्राह्मण, अथिति का सत्कार करने वाला, शांत, स्त्री  सम्मानी, भाइयो का हितैषी होता है।
  • मंगल के नवांश मे मंगल फल जातक  महा हिंसक, तलवार आदि के युद्ध मे निपुण, विकृत,  दुराचारी, सज्जनो और साधुओ से द्वेषीला होता है।
  • बुध के नवांश मे मंगल फल जातक विद्वानो का पूजक, धैर्यवान, धनवान, उदार, साहसी, सुभग, साधु स्वभाव वाला, सुखी, सौभाग्यशाली होता है।
  • गुरु के नवांश मे मंगल फल  जातक विभिन्न प्रकार के अन्न-पान करने वाला, रण कुशल, शूरवीर, साहसी, द्वीपो मे विचरण करने वाला, वाहन सुख वाला होता है।
  • शुक्र के नवांश मे मंगल फल जातक प्रेम का लोभी, रतिक्रीड़ा प्रेमी, सुभाषी, मित्र व गुरु से प्रीतिवान, सुधर्म मे रत, बहुत से नोकरो युक्त होता है।
  • शनि के नवांश मे मंगल फल जातक बहुत से पापो मे रत, गुप्त व नेत्र रोगी, आलोचक, दुष्ट, स्त्री विहीन, व्यर्थ बोलने और तर्क करने वाला होता है।

सूत्र यदि मंगल का नवांश बलि हो, तो जातक ब्राह्मण-देव पूजक, शूर, कीर्तिवान, स्त्रियो को आश्रय देने वाला, विद्या प्राप्त नृप तुल्य होता है। मंगल का नवांश बलहीन होने पर जातक रोगी, पीड़ित, शत्रुओं से  हानि और दुःख मित्रो से  अपमानित होता है।

समस्त ग्रहो के नवांश मे बुध फल

  • सूर्य के नवांश मे बुध फल जातक पापी, विकृत, स्त्री सुख से हीन, कलह प्रिय, जुआरी, चोर, दुराचारी, दुश्चरित्र हतोत्साहित होता है।
  • चंद्र के नवांश मे बुध फल जातक सुन्दर मुख, उदार चेष्टा वाला, शत्रुओ पर विजयी, ख्याति प्राप्त, मित्र और स्त्रियो का सम्मान करने वाला होता है।
  • मंगल के नवांश मे बुध फल जातक रक्त रोगी, दुःखी शरीर, कुतर्क करने वाला, मित्रो का अनिष्ट करने वाला, राजा से पीड़ित, द्वेषी, दुष्ट होता है।
  • बुध के नवांश मे बुध फल जातक सौम्य, सुरूप, सुभग, ऐश्वर्यशाली, देवता ब्राह्मण का सम्मान करने वाला, प्रसन्न चित्त, अतिथि प्रिय, सबका प्रिय होता है।
  • गुरु के नवांश मे बुध फल जातक अनेक प्रकार से से धनी, प्रतापी, सुमित्रो से युक्त, सुशील, सदाचारी होता है।
  • शुक्र के नवांश मे बुध फल जातक विविध धनो से युक्त, इच्छित पुत्र संतति वाला, विद्वानो का पूजक, मित्रवान, हमेशा उदार चेष्टा वाला होता है।
  • शनि के नवांश मे बुध फल जातक निरोगी,  कुशिल्पी, धर्म विरोधी, आधार हीन, दूसरो की स्त्री मे आसक्त, गुण हीन, पर धन लोभी होता है।

सूत्र नवांश मे बुध प्रबल होने पर जातक पवित्र, क्षमा व सत्य मे रत, कृतज्ञ, धन वैभव सर्व सुख संपन्न होता है। नवांश मे बुध निर्बल होने पर जातक कठोर बोलने वाला, विमुक्त देह, भाइयो का अहित करने वाला, घृणित, दुश्चरित्र, निंदनीय, क्रूर, निर्दयी होता है।

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समस्त ग्रहो के नवांश मे गुरु फल

  • सूर्य के नवांश मे गुरु फल जातक  नौकर, दास, कुकर्मी, अति दुष्ट, धन विहीन, भीरु, क्रोधी (प्रचण्ड) होता है। 
  • चंद्र के नवांश मे गुरु फल जातक सुभग, मनोहर, अथिति प्रेमी, मनुष्यो से प्रेम करने वाला, प्रसन्नचित्त, स्त्रियो का हित चाहने वाला हॉता है।
  • मंगल  के नवांश मे गुरु फल जातक मुख रोग से पीड़ित, भयभीत रहने वाला (भीरु) अति दुष्ट, व्यसनी, खुले मे आम पाप करने वाला होता है।
  • बुध के नवांश मे गुरु फल जातक दयावान, मनोहर, धर्म मे रत, धनवान, सुन्दर वेश धारण करने वाला, शास्त्रार्थ (साहित्यिक , वादविवाद) निपुण होता है।
  • गुरु के नवांश मे गुरु फल जातक राजा के समान सुखी, धनवान, स्त्री-पुत्र से सुखी, शस्त्रार्थ करने मे माहिर, सुरुचि संपन्न, सुयोग्य लोगो से युक्त होता है।
  • शुक्र के नवांश मे गुरु फल जातक सुखी, यशस्वी, तेजस्वी, कृतज्ञ, पुण्यात्मा, धार्मिक आस्था युक्त, गुणवान, सदाचारी होता है।
  • शनि के नवांश मे गुरु फल जातक आंख, नाक, कान रोग से रोगी, व्यसनी, अल्पबुद्धि, आपदाग्रस्त, धन विहीन, प्रतापहीन, राजा से पीड़ित होता है।

सूत्र नवांश मे गुरु के बलहीन होने पर जातक भयभीत, दुःखी, पापी, दीन, बुद्धि विहीन, सुखहीन, अज्ञात भय (भूत-प्रेत) से पीड़ित, शोकयुक्त होता है। यदि नवांश मे गुरु वर्गोत्तम या मित्रक्षेत्री हो, तो जातक सद्चरित्र, जीवन साथी के प्रति निष्ठावान होता है। यदि नवांश मे स्वराशिस्थ या उच्चराशिस्थ हो, तो  दो या तीन या अधिक प्रणय (विवाह) होते है।

समस्त ग्रहो के नवांश मे शुक्र फल

  • सूर्य के नवांश मे शुक्र फल जातक व्याकुल, भीरु, निष्क्रिय, अल्प शक्ति वाला, ठग, सुख हीन, आडम्बर करने वाला, षड्यंत्रकारी, शत्रुओ से भयभीत रहता है।
  • चंद्र के नवांश मे शुक्र फल जातक  पुत्रवान, सुन्दर सुशील पत्नी वाला, धन-धान्य प्राप्त करने वाला, निर्बल शत्रु वाला, बंधुओ से प्रेम करने वाला होता है।
  • मंगल के नवांश मे शुक्र फल जातक ईर्ष्यालु, रक्त रोगी, द्वेषी, असामाजिक तत्वो और सरकार से पीड़ित, बईमान होता है। यदि जन्मांग या नवांश मे मंगल और शुक्र युति हो या आपस मे दृष्टि योग या शुक्र मंगल के नवांश मे हो, तो जातक भग चुम्बन करता है या मुख से रति करता है।
  • बुध के नवांश मे शुक्र फल जातक उत्कृष्ट बुद्धिमान, धार्मिक, तीर्थ स्थान मे आश्रय लेने वाला, देव-गुरु भक्त, अथिति प्रिय, नियमित जीवन व्यापन करने वाला होता है।
  • गुरु के नवांश मे शुक्र फल जातक देव ब्राह्मणो का सम्मान करने वाला, विवेकी, ज्योतिष शास्त्र जानने का इच्छुक, नृप प्रिय, भाईओ से प्रेम रखने वाला होता है।
  • शुक्र के नवांश मे शुक्र फल जातक आध्यात्म विद्या मे रत, स्वधर्मी, बुद्धिमान, शत्रुओ को जीतने वाला, शत्रु भय मुक्त, व्रत शील होता है।
  • शनि के नवांश मे शुक्र फल जातक रोगी, दुःखी, दरिद्र, पत्नी और पुत्र से त्यागा हुआ, पीड़ित, नीचजनो से सम्बन्ध रखने वाला होता है 

सूत्र शुक्र के नवांश या शुक्र नवांश मे बलवान (स्वक्षेत्री, उच्च, मित्रक्षेत्री, वर्गोत्तम) होने पर जातक शत्रुहंता, यज्ञ प्रिय, दान दाताओ मे प्रसिद्ध, दोष मुक्त, कुल या समुदाय मे प्रधान होता है।  शुक्र नवांश बलहीन होने पर जातक अज्ञात भय से पीड़ित, क्रूर, मिथ्यावादी, झगड़ालू, सत्य धन से विहीन, द्वेषी, मित्रहीन होता है। जन्मांग या नवांश में शुक्र शनि से युत या दृष्ट या शनि के नवांश मे हो, तो जातक अप्राकृतिक मैथुनी (मुख, गुदा, पशु, सम लैंगिक आदि) होता है।

समस्त ग्रहो के नवांश मे शनि फल

  • सूर्य के नवांश मे शनि फल जातक तीव्र क्रोधी, हिंसक, नष्ट, अच्छे लोगो से रहित, द्वेषी, तुनुक मिजाजी, विध्वंशकारी, अपमानित होता है।
  • चंद्र के नवांश मे शनि फल जातक सुन्दर स्त्री वाला, शास्त्रो मे अनुरक्त, यज्ञ करने कराने वाला, दान शील, जितेन्द्रिय, विज्ञान अनुसन्धानी, मन्त्र विद्या मे श्रेष्ट होता है।
  • मंगल के नवांश मे शनि फल जातक अश्लील भाषी, पर निंदक, पराई स्त्री मे आसक्त, ठगी करने वाला, विधर्मी, मित्र विहीन, कुवेशी (मैले वस्त्र पहिनने वाला) होता है।
  • बुध के नवांश मे शनि फल जातक सुख व भोग से तृप्त, सुन्दर, शुभ लाभ से युक्त, विधिज्ञ (क़ानूनवेत्ता, वकील) अथिति प्रिय, यज्ञ करने वालो मे प्रधान (यज्ञाचार्य) होता है।
  • गुरु के नवांश मे शनि फल जातक धर्म मर्मज्ञ, शास्त्रो के मनन चिन्तन मे रत, विद्या या ज्योतिष ज्ञाता, विवेकी, प्रसन्नचित्त, प्रचुर अन्न दान करने वाला होता है।
  • शुक्र के नवांश मे शनि फल जातक तीर्थो का आश्रय लेने वाला, इष्टधर्मी, गुरुजनो का कृपापात्र, बुद्धिमान, विद्वान्, इष्ट मतिवाला, मनोहर होता है।
  • शनि के नवांश मे शनि फल जातक दानी, भोगी, सुन्दर पत्नी का उपभोग वाला, हमेशा सुखी, शत्रु से विजयी, स्थिर, उदार, साहसी होता है।

सूत्र मतान्तर – नवांश मे शनि बलहीन हो, तो जातक बहुत से शस्त्र युक्त, पूर्व उम्र मे हिंसक, धन-धान्य संपन्न, कल्याणप्रद, विविध विषय का ज्ञाता होता है।

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